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सपने साकार करने को आबिदा ने खुद लड़ी लड़ाई

मुजफ्फरपुर : सपने वो नहीं होते जो हम रात को देखते हैं, बल्कि सपने वो होते हैं जो खुली आंखों से देखे जाते हैं. उन्हें पाने के लिए लोग जेहादी हो जाते हैं, जी जान लगा देते हैं. यह कहना है आबिदा खातुन का, जिन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपमानजमक निर्णयों एवं […]

मुजफ्फरपुर : सपने वो नहीं होते जो हम रात को देखते हैं, बल्कि सपने वो होते हैं जो खुली आंखों से देखे जाते हैं. उन्हें पाने के लिए लोग जेहादी हो जाते हैं, जी जान लगा देते हैं. यह कहना है आबिदा खातुन का, जिन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपमानजमक निर्णयों एवं तमाम पाबंदियों का विरोध करने अपनी लड़ाई खुद लड़ी. आज वह देश की दूसरी बेटियों के लिए प्रेरणास्रोत बन गयी है.
मुजफ्फरपुर के रतवारा मुहल्ला में पली- बढ़ी आबिदा को बचपन से ही सजने- संवरने का शौक था. मेक ओवर में उनको कमाल हासिल था तथा मुहल्ले के लोग उनसे साज शृंगार कराते थे. सर पर आसमां टूट पड़ा, जब छोटी उम्र में ही पिता की मृत्यु हो गयी. आस-पड़ोस के लोगों ने आबिदा के इर्द- गिर्द पारिवारिक प्रतिष्ठा, अमूल्य छवि का ऐसा भ्रामक जाल बुना, जिसमें उलझ कर, उसी को यथार्थ मानकर आबिदा ने नौवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी. अम्मी व भाइयों ने पढ़े लिखे रोजगाररत लड़के से निकाह कर दिया.

निकाह के बाद ससुराल आई आबिदा को सास ने समझाया, मान- मर्यादाएं टूट रही हैं. अत: हम पर्दा प्रथा में विश्वास रखते हैं. घर का कामकाज सलीके से करना तथा प्रतिष्ठा का खयाल रखना. सालों तक सिलसिला चलता रहा. इस बीच दुर्भाग्य फिर दरवाजे पर आ गया. निकाह के तीन साल बाद कॉस्मेटिक की दुकान चला रहे पति की मृत्यु हो गई. पर्दा प्रथा के कारण आबिदा कभी दुकान पर नहीं जा सकी तथा अपने ऊपर लादे गये सभी बंधनों को उसने मौन स्वीकृति देकर नीयति मान लिया था. लेकिन नीयति को तो कुछ और ही मंजूर था.

एकमात्र पुत्र नवजात रेहान के साथ आबिदा का भविष्य अंधकारमय हो चला. विधवा सास ने जवान पुत्र के मौत की वजह बहू व नवजात पोता को मानकर जुल्म ढाना शुरू कर दिया. इतना ही नहीं, आबिदा को बच्चे सहित अपने घर से निकाल भी दिया. तंगहाल आबिदा की हालत व हिम्मत देखकर मायके में भाइयों ने सहारा दिया व कुटुंब न्यायालय में अनुमंडल न्यायिक दंडाधिकारी पूर्वी के यहां घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज कराया. कानूनी लड़ाई के दौरान मैट्रिक व इंटर की परीक्षा पास कर ब्यूटीशियन का कोर्स किया तथा कोर्ट के फैसले के अनुसार मिले आठ लाख रुपये से ब्यूटीपार्लर खोलने का सपना पूरा किया. आज वह कई लड़कियों को ट्रेनिंग देकर प्रशिक्षित कर रही है तथा ग्रेजुएशन की पढ़ाई भी कर रही है. नन्हे रेहान भी प्ले स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं.

डॉ संगीता शाही, अधिवक्ता, अपर लोक अभियोजक

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