मुंगेर : बाढ़ की विभीषिका से लोग उबर नहीं पा रहे. पानी तो लौटने लगी है लेकिन लोग अपने घरों की ओ अब भी नहीं लौट पा रहे. क्योंकि आज भी पानी का कहर उनके गांवों में बरकरार है. यही कारण है कि लोग सड़कों पर दिन गुजार रहे हैं. उनकी जिंदगी खानाबदोश से भी बदतर गुजर रही है. राष्ट्रीय उच्च पथ 80 हेमजापुर से लेकर घोरघट मुंगेर सीमा तक सड़कों पर जगह-जगह पॉलीथीन से तंबू तैयार कर जीवन-यापन कर रहे हैं.
पिछले 15 दिनों में इनको न दिन में चैन है और न रात को ही आराम. पड़हम, सिंघिया, शहीद स्मारक हेरुदियारा, कालारामपुर, बोचाही, कल्याणपुर, घोरघट जैसे दो दर्जन से अधिक स्थानों पर लोग सड़कों को ही अपना आशियाना बनाये हुए हैं. बावजूद लोग इस तबाही के बीच सड़कों पर खानाबदोश की तरह जिंदगी बिता रहे है. किला परिसर के पोलो मैदान के समीप चारों और पॉलिथीन सीट के नीचे जीवन यापन कर रहे है.
अगर कोई गाड़ी पहुंचती है तो तंबू के अंदर रह रही महिला व लड़की बाहर मुंह कर निहारती है कि कहीं प्रशासन द्वारा उन्हें राहत तो उपलब्ध नहीं कराया जायेगा. एनएच पर शरण लिये हुए बाढ़ पीड़ितों की कहानी भी अजीब है. इनको न तो भोजन मिल रहा है और न ही मवेशियों के लिए चारा. जानकारी के अभाव में ये लोग राहत कैंप पहुंच कर अपना नाम भी सूची में नहीं जुड़वा पा रहे है. सरकारी राहत इन तक नहीं पहुंच पा रही है. कुंती देवी, कापो मंडल, सुनील बिंद, हरिओम यादव ने बताया कि उनलोगों को सरकारी स्तर पर कोई राहत सामग्री उपलब्ध नहीं कराया गया है. न तो भोजन दिया जा रहा है और न ही थाली-ग्लास व धोती मिला है. पशुपालकों ने बताया कि हमलोग तो किसी तरह जिंदगी जी लेंगे लेकिन पशु पालने में परेशानी बढ़ गयी है. जिला प्रशासन द्वारा लगातार चारा उपलब्ध कराया जाय.