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हर माह सात लाख खर्च, तीन माह में महज सात मरीज भरती

नशामुक्ति केंद्र. इलाज के नाम पर खानापूर्ति मुंगेर सदर अस्पताल परिसर में लाखों रुपये खर्च कर वातानुकूलित नशा मुक्ति केंद्र बनाये गये. किंतु सरकार ने जिस उद्देश्य से नशामुक्ति केंद्र की स्थापना की, वह पूरा नहीं हो रहा. मुंगेर : राज्य में पूर्ण शराब बंदी को लेकर शराब व अन्य नशे का लत छुड़ाने के […]

नशामुक्ति केंद्र. इलाज के नाम पर खानापूर्ति

मुंगेर सदर अस्पताल परिसर में लाखों रुपये खर्च कर वातानुकूलित नशा मुक्ति केंद्र बनाये गये. किंतु सरकार ने जिस उद्देश्य से नशामुक्ति केंद्र की स्थापना की, वह पूरा नहीं हो रहा.
मुंगेर : राज्य में पूर्ण शराब बंदी को लेकर शराब व अन्य नशे का लत छुड़ाने के लिए जिले में नशा मुक्ति केंद्र खोला गया. मुंगेर सदर अस्पताल परिसर में लाखों रुपये खर्च कर वातानुकूलित नशा मुक्ति केंद्र बनाये गये. किंतु सरकार ने जिस उद्देश्य से नशामुक्ति केंद्र की स्थापना की, वह पूरा नहीं हो रहा. इस केंद्र पर प्रतिमाह लगभग 7 लाख रुपये चिकित्सकों व स्वास्थ्यकर्मियों के वेतन तथा मेंटनेंस पर खर्च हो रहे. किंतु तीन माह में मात्र सात रोगी अबतक यहां भरती हुए हैं. इसका भी समुचित इलाज यहां नहीं किया गया और उनमें से कई को पटना-भागलपुर रेफर कर दिया गया.
3500 नशेड़ी को किया गया था िचह्नित : नशामुक्ति केंद्र के उद्घाटन के उपरांत अप्रैल माह में 4, मई में 1 तथा जून महीने में 2 मरीजों को भरती किया गया़ किंतु उनमें आधे से अधिक मरीज को भागलपुर रेफर कर दिया गया़ रविवार को छोड़ कर बांकी दिन सुबह व शाम में ओपीडी भी चलती है, जिसमें पिछले तीन महीने में लगभग 85 मरीजों का काउंसेलिंग हो पाया है़ जबकि स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिले में नशेड़ियों का जो सर्वे कराया गया था उसमें 3500 नशेड़ी को चिन्हित किया गया़
सोचने वाली बात यह है कि जिले में शराब की बिक्री पूर्णत: बंद हो चुकी है़ शराबियों को अब शराब उपलब्ध नहीं हो पा रहा. बावजूद नशा के आदी मरीज नशामुक्ति केंद्र नहीं पहुंच रहे.
प्रतिमाह खर्च हो रहे सात लाख : नशामुक्ति केंद्र के नोडल पदाधिकारी, 2 चिकित्सक, 6 स्टाफ नर्स, 2 परामर्शदाता, एक चतुर्थवर्गीय कर्मचारी तथा अन्य मदों में प्रतिमाह लगभग 7 लाख रुपये खर्च हो रहे हैं. किंतु उस अनुसार मरीजों को लाभ नहीं मिल रहा. आंकड़ों को देखा जाये तो भरती किये गये एक मरीज पर स्वास्थ्य समिति द्वारा लगभग 3 लाख रुपये खर्च किये गये हैं. क्योंकि तीन माह में विभाग ने नशा मुक्ति केंद्र पर लगभग 21 लाख खर्च किये और भरती किये गये मात्र सात रोगी.
कहते हैं सिविल सर्जन
सिविल सर्जन डॉ श्रीनाथ ने बताया कि नशामुक्ति केंद्र में मरीजों की संख्या कम होने के दो कारण हो सकते हैं. या तो नशेड़ियों को अब भी शराब उपलब्ध हो रहे है या फिर जिले में अत्यधिक शराब पीने वालों की संख्या ही कम है़
मरीजों को भरती करने से बचते हैं चिकित्सक
सूत्रों की माने तो यहां के अधिकारी ही मरीजों को भरती नहीं होने देना चाहते. यदि कोई मरीज भरती हो भी जाये तो उसे अविलंब रेफर कर दिया जाता है़ ऐसा इसलिए भी किया जाता है कि नशामुक्ति केंद्र का वार्ड खाली रहे तथा उसमें मरीज के बदले यहां पर प्रतिनियुक्त चिकित्सक व मेडिकल स्टाफ आराम फरमा सके़ यहां के अधिकारियों को जब मन हो वे यहां बैठ कर गुफ्तगू कर सके़ इसका विजुअल सीसी टीवी कैमरे के रिकार्ड से देखा जा सकता है़
पत्रिका व खेलकूद सामग्री नहीं है उपलब्ध
नियमों के अनुसार नशामक्ति केंद्र में मरीजों के मनोरंजन के लिए अखबार, पत्रिका व खेलकूद के सामान की व्यवस्था दी जानी है़ किंतु यहां पर एक टेलीवीजन को छोड़ कर अन्य कोई भी मनोरंजन के साधन की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है़ जब किसी वरीय अधिकारी व मंत्री का निरीक्षण होने वाला रहता है, तो यहां ढ़ेर सारे पुराने अखबार व मैगजीन लाकर रख दिये जाते हैं.

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