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पहले से तैयार रहता है रेफर परची
मुंगेर: पूर्व में कर्मचारी राज्य बीमा अस्पताल में आउटडोर व इंडोर इलाज की व्यवस्था थी. वर्ष 1 अप्रैल 2007 में ही इंडोर अस्पताल की व्यवस्था बंद हो गयी. यहां सिर्फ वर्तमान में आउट डोर चलता है. जहां रोजाना 5 से 6 की संख्या में रोगियों का इलाज किया जाता है. नर्स के हवाले अस्पताल बीमा […]
मुंगेर: पूर्व में कर्मचारी राज्य बीमा अस्पताल में आउटडोर व इंडोर इलाज की व्यवस्था थी. वर्ष 1 अप्रैल 2007 में ही इंडोर अस्पताल की व्यवस्था बंद हो गयी. यहां सिर्फ वर्तमान में आउट डोर चलता है. जहां रोजाना 5 से 6 की संख्या में रोगियों का इलाज किया जाता है.
नर्स के हवाले अस्पताल
बीमा अस्पताल ए ग्रेड नर्स के हवाले है. क्योंकि यहां के एक चिकित्सक प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी है जो सिर्फ शुक्रवार और शनिवार को ही बैठते हैं. जबकि एक चिकित्सक गया जिला के बंजारी में डिप्टेशन पर है. जिसके कारण सप्ताह में चार दिन यह अस्पताल बिना चिकित्सक के भरोसे ही चलता है. यानी ए ग्रेड नर्स मीणा कुमारी के भरोसे ही यह अस्पताल चल रहा है. अगर गंभीर रोगी आते हैं तो उसे नर्सिग होम अथवा सदर अस्पताल रेफर कर दिया जाता है. अस्पताल का हाल यह है कि यहां पहले से ही प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी के हस्ताक्षर युक्त मुहर यानी रेफर परची बन कर तैयार रहता है. रोगी पहुंचने पर नर्स एवं प्यून उसी परची के सहारे मरीज को सदर अस्पताल रेफर कर देते हैं.
वर्षो से लापता है लिपिक
कहने के तो यहां चार लिपिक के पद सृजित हैं. जिसमें एक रिक्त है. तीन लिपिक वर्षो से लापता है. बताया जाता है कि अभय कुमार नामक लिपिक पिछले पांच वर्षो से अपने ड्यूटी से गायब है. विभाग ने उसे निलंबित करते हुए उसका मुख्यालय भी कहलगांव कर दिया है. जबकि एक लिपिक रविंद्र कुमार छुट्टी पर है. इतना ही नहीं जिस लिपिक सरवर अफरोज बल्की का सप्ताह में दो दिन बुधवार और गुरुवार को यहां ड्यूटी पर तैनात रहना है.
नहीं है जांच की व्यवस्था
पूर्व में जब यहां सही तरीके से इंडोर व आउटडोर चलता था तो कई प्रकार के जांच की भी व्यवस्था थी. जिसके लिए यहां लैब टेक्नीशियन व फर्मासिस्ट का पद सृजित है. लेकिन वर्तमान समय में जांच की कोई व्यवस्था नहीं है.
राशि का हो रहा दुरुपयोग
सूत्रों का कहना है कि यहां मात्र इलाज के बिल का खेल चलता है. निजी नर्सिग होम में गंभीर रोगी अपना इलाज कराते है. फिर यहां इलाज पर हुए खर्च की ब्योरा बिल के माध्यम से जमा किया जाता है. जिसे निदेशालय भेज कर राशि आने पर मरीजों को दिया जाता है. जिसके बाद राशि का बंटवारा होता है.
भूत बंगला बना क्वार्टर
चिकित्सक व कर्मचारियों के रहने के लिए क्वार्टर भी अस्पताल प्रांगण में बना हुआ है. जो वर्तमान समय में खंडहर में तब्दील हो गया है. जहां जाने में भी लोगों को भय लगता है. अस्पताल भवन भी भूत बंगला बना हुआ है. अस्पताल परिसर के चारों ओर झाड़-झंखार उगे हुए है. जिससे विषैले सांप के अलावे कीड़े-मकौड़े मंडराते रहते है. अस्पताल परिसर में दिन में भी घुसने पर डर लगता है कि कहीं कोई सांप या कीड़े-मकौड़े काट न ले. इलाज कराने के बदले कहीं जान ही न चली जाय.
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