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मिथिला में हुआ था सर्वप्रथम जनतंत्र का अभ्युदय

प्रतिनिधि , जमालपुरनयागांव जमालपुर में अंतरराष्ट्रीय मैथिली परिषद के 66 वें कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर में सोमवार को दूसरे दिन मिथिला के इतिहास पर चर्चा हुई. अध्यक्षता प्राचार्य प्रो विनोदानंद झा ने की. परिषद के संस्थापक व राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. धनाकर ठाकुर ने कहा कि मिथिला भूमि का नाम शापग्रस्त राजा निमि की मृत्यु के बाद […]

प्रतिनिधि , जमालपुरनयागांव जमालपुर में अंतरराष्ट्रीय मैथिली परिषद के 66 वें कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर में सोमवार को दूसरे दिन मिथिला के इतिहास पर चर्चा हुई. अध्यक्षता प्राचार्य प्रो विनोदानंद झा ने की. परिषद के संस्थापक व राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. धनाकर ठाकुर ने कहा कि मिथिला भूमि का नाम शापग्रस्त राजा निमि की मृत्यु के बाद उनके शरीर के मंथन से उत्पन्न बालक मिथि के नाम पर पड़ा. जहां सबसे पहले जनतंत्र का अभ्युदय 57 वें जनक कराल के पतन के बाद हुआ. उन्होंने कहा कि माता सीता के पिता 16 वें जनक थे. जिन्हें सीतामढ़ी के पुनौरा में हल जोतने के समय पुत्री रूप में सीता जी मिली थी. मिथिला के दक्षिणी भाग वैशाली तथा लिच्छवी में जनतंत्र फूला-फला. 6-7 वीं सदी में राजा सल्हेश का शासन विस्तार तिब्बत तक था. बाद में बंगाल के बौद्ध मतावलंबी पाल वंश, सेन वंश तथा कर्णाट वंश का शासन रहा. ग्यासुद्दीन ने बाद में मिथिला पर आधिपत्य कर लिया. 1353 से 1957 तक वहां मैथिल ब्राह्मणों का शासन रहा. 1774 में अंग्रेजों ने सरकारी तौर पर तिरहुत को बोर्ड ऑफ रेवेन्यू पटना के अधीन कर मिथिला की पहचान को बिहार से मिटा दिया. पर आज भी मिथिला लोगों के मानस पटल पर जीवित है तथा इसका सांस्कृतिक विस्तार देवघर से चंपारण तक है. देश के 24 जिलों के लोग मिथिला को अलग राज्य बनाने की मांग कर रहे हैं. प्रो. नागेश्वर झा, सुबोध मिश्र, शशांक मिश्र, प्रो. दीपक कुमार सिंह, शंभु शरण झा, प्रो. मधुकांत झा, रविकांत, प्रो. रेणुबाला, प्रो नारायण यादव उपस्थित थे. धन्यवाद ज्ञापन उमेश नारायण ने किया.

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