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अब तक 24 अवतार ले चुके हैं भगवान : मुद्गलपुरी

मुंगेर : उत्तर वाहिनी गंगा तट स्थित श्री राधा कृष्ण प्रेम कुंज मंदिर बबुआघाट में चल रहे 11 दिवसीय श्रीराम कथा ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन भगवान के अवतार पर चर्चा हुई, जिसमें अंगिका रामायण के रचयिता संत कवि विजेता मुद्गलपुर ने सारगर्भित प्रवचन पेश किया. उन्होंने कहा कि अवतार के दो प्रकार है. एक […]

मुंगेर : उत्तर वाहिनी गंगा तट स्थित श्री राधा कृष्ण प्रेम कुंज मंदिर बबुआघाट में चल रहे 11 दिवसीय श्रीराम कथा ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन भगवान के अवतार पर चर्चा हुई, जिसमें अंगिका रामायण के रचयिता संत कवि विजेता मुद्गलपुर ने सारगर्भित प्रवचन पेश किया. उन्होंने कहा कि अवतार के दो प्रकार है. एक पूर्णावतार और दूसरा अंशावतार. अब तक भगवान के चौबीस अवतार हो चुके हैं, जिसमें दक्ष पूर्णावतार है और मत्स्य, कच्छप, बराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कश्यप. कहते हैं भगवान नारायण अनेक अवतारों का अक्षय कोष हैं. उन्हीं से सारे अवतार प्रकट होते है. एक-एक अवतार के अनेक -अनेक काल होते हैं. उन्होंने कहा कि अवतार के कारण को जानना चाहिए और अवतार के मूल शब्द को समझना चाहिए. अवतरण का अर्थ है उतरना, नीचे उतरना. अवतरित का अर्थ अवतीर्ण के अर्थ में हैं. अर्थात नीचे आया हुआ. ब्रह्म का मनुष्य हो जाना यही अवतार है. जब कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को अवतारी कहता है तो उसे यह भी बताना चाहिए कि किसका अवतार जय और विजय, रावण और कुंभकर्ण के रूप में अवतरित हुए. जालंधर रावण के रूप में अवतरित हुए. राजा भानु प्रताप रावण के रुप में अवतरित हुए. देवताओं का भी अवतरण महापुरुष के रूप में होता है. उन्होंने कहा कि पद से नीचे उतरने को अंग्रेजी में डिमोशन कहते हैं. यह ब्रह्म डिमोशन है. कोई व्यक्ति नहीं चाहता कि हमारे स्वजन का डिमोशन हो तो भला संत कैसे चाहेगा कि ब्रह्म का अवतरण हो. संत तो ब्रह्म है. मिलने की बात करता है, लीन होने की बात करता है.

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