मधुबनी : सात साल की राधा के सिर पर एक बांस के बने वर्तन में कुछ चना और कुछ लिट्टी बने हुए थे. धूप तेज थी. राधा उसे अपने सिर पर उठाये जा रही थी. दोनों हाथ से बांस के वर्तन को इस कदर पकड़े हुए थी मानों यह गिरा तो जीवन की सारी पूंजी समाप्त. सात साल की राधा इन दिनों घूम घूम कर यह चना और लिट्टी बेचकर लाती है तो घर का खर्चा चलता है.
छोटे छोटे कदम से वह सारी दिन दुनिया से बेखबर हो अपनी मस्ती में जा रही थी. हमने राधा को अपने पास बुलाया और उसके सिर पर रखे सामान के बारे में पूछा तो बताती है कि ” माय बना क देलकइ. कहल कई ग जे बेच क ला. जे पाई होतै ओइ स बाउ (पिता) के दबाईयो अबै हइ आ माय दुकान स आउरो समान मंगबई हइ. बलू हम इ घुघनी (चना)आ लिट्टी धार के किछार (किनारा) में बेचै छियइ. एमरी तो धार के दोसरो पार ओई गांम सेहो जाई छिये.” दरअसल बीते दिनों आयी बाढ़ ने तबाही मचा दी. इससे मधेपुर के द्वालख, जानकीनगर, महपतिया, गढगांव में भयानक रूप से क्षति हुई है.
राधा जानकीनगर महादलित बस्ती की रहने वाली है. बीते दिनों आये बाढ़ में हुई तबाही में उसका घर भी पूरी तरह से पानी में गिर गया. घर के अंदर ही बड़ा सा मोइन बना है. टूटे घर को ठीक करने में उसके पिता की तबीयत खराब हो गयी. बुखार से तप रहा है. घर में कुछ रहा नहीं. ऐसे में कहां से दवा आती और कहां से घर का राशन पानी ही चलता. ऐसे में राधा की मां सरिता देवी ने बाजार से कुछ चना खरीद कर लायी और उसे पकाकर राधा को बेचने के लिए दिया. राधा बताती है कि वह बीते चार पांच दिन से इसी प्रकार घुघनी और लिट्टी बेचने जाती है. दिन भर में जो बिका और पैसे आये उससे उसकी मां राधा के पिता के लिये दवा भी लाती है और खाने पीने को कुछ सामान भी. घुघनी बेचने का काम भले ही इस गांव में नन्हीं राधा ही कर रही थी. पर पूरे बस्ती में दर्जनों ऐसे परिवार थे जिनके पास दिन रात में खाने को कुछ नहीं बचा था. बीमार के लिए दवा खरीदें इतने पैसे भी नहीं थे. कहां जायें किससे कर्ज लें . कोई इस आफत से बचा हो तो न इन्हें कर्ज दें. हजारों के आबादी का जीवन फांकाकसी में बीत रहा है.