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… चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
मधेपुरा : ‘गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले, चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले’. ठंड के मौसम का इन दिनों जो मिजाज है उन्हें देख कर फैज अहमद फैज के मशहूर नज्म की ये पंक्तियां बेसाख्ता लब पे आ जाती है. महज चार दिन पहले दिन में धूप के तल्ख मिजाज में पसीने […]
मधेपुरा : ‘गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले, चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले’. ठंड के मौसम का इन दिनों जो मिजाज है उन्हें देख कर फैज अहमद फैज के मशहूर नज्म की ये पंक्तियां बेसाख्ता लब पे आ जाती है.
महज चार दिन पहले दिन में धूप के तल्ख मिजाज में पसीने छूट जाते थे. बुजुर्ग चिंतित थे कि ये मौसम को क्या हो गया है. दिसंबर परवान पर है और ठंड नदारद. दोपहर की तेज धूप साये में धकेल देती थी. किसान माथे पर हाथ धरे बैठे थे कि गेहूं की फसल का क्या होगा? हां धोबी के कपड़े आसानी से सूख रहे थे.
शनिवार को मौसम ने अचानक तेवर बदला और शाम होते-होते लोगों के हाथ जेब का रास्ता तलाशने लगे. रविवार को कोहरे ने पूरे दिन धूप को अपने पहरे में रखा. सोमवार को भी वही आलम रहा. मौसम का पारा तेजी से नीचे उतरा. संदूकों में तह कर रखे स्वेटर बदन पर सज गये.
किसानों ने भी राहत की सांस ली. खेतों में गेहूं के नन्हें पौधों को जम कर ओस की खुराक मिली. बुजुर्गों ने राहत की सांस लेते हुए दुबक कर अलाव जला लिये हैं कि सब ठीक चल रहा है. दोपहर बाद से ही कोहरे पर्देदारी पर उतारू हो गये. माताओं ने बच्चों को आंचल में छुपाते हुए ठंड में बाहर निकलने की मनाही कर दी है. बच्चों को स्कूल भेजते समय वे सशंकित हैं कि वे बीमार न पड़ जायें.
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