मंहगाई क्यों न बने चुनावी मुद्दा
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नहीं गल रही गरीबों की दाल
मंहगाई क्यों न बने चुनावी मुद्दा खुदरा बाजार में अरहर दाल 140 रुपये तो उड़द दाल 160 रुपये किलो लखीसराय : मंहगाई इस कदर सिर चढ़ कर बोल रही है कि गरीबों को अब रोटी-दाल भी नसीब नहीं हो रहा है. एक कहावत आम है कि दाल-रोटी खाओ और सुखी रहो. कहने का अभिप्राय यह […]
खुदरा बाजार में अरहर दाल 140 रुपये तो उड़द दाल 160 रुपये किलो
लखीसराय : मंहगाई इस कदर सिर चढ़ कर बोल रही है कि गरीबों को अब रोटी-दाल भी नसीब नहीं हो रहा है. एक कहावत आम है कि दाल-रोटी खाओ और सुखी रहो.
कहने का अभिप्राय यह था कि आम लोगों को ज्यादा कुछ नहीं तो दाल-रोटी सहज तरीके से उपलब्ध था. इसके लिये लोगों को मशक्कत नहीं करनी होती थी. लेकिन दाल की आसमान छूती कीमतों ने गरीबों का ये भी निवाला भी छीन लिया.
रोटी की व्यवस्था तो हो जाती है, लेकिन दाल खाना अब हर किसी के बूते की बात नहीं रही. उड़द व अरहर दाल तो गरीबों की पहुंच से काफी दूर हो गयी. अभी भी खुदरा बाजार में अरहर दाल 140 रुपये से लेकर 150 रुपये तक बिक रही है. जबकि उड़द दाल 150 से 160 रुपये किलो तक बिक रही है.
इस कारण आम तौर पर लोग इससे दूरी बनाकर विकल्प के रूप में दूसरे दालों चना दाल, मसूर दाल आदि से काम चला रहे हैं. वहीं मूंग दाल भी 120 रुपये प्रतिकिलो बिक रहा है.
पिछले कई माह से दाल इस कदर मंहगी हुई कि लोग विकल्प के तौर पर चना, काबुली मटर सहित अन्य चीजों का उपयोग दाल की जगह कर रहे हैं. वहीं गरीब व निचले तबके के लोग साग, आलू आदि विकल्पों से काम चला रहे हैं.
दुकानदारों के मुताबिक अरहर दाल में आयी तेजी से हमलोग भी काफी परेशान हैं. हर दिन ग्राहकों से तू-तू-मैं-मैं हो रही है. वहीं दुकानदारी में पूंजी भी अधिक लग रहा है. एक क्विंटल दाल खरीदने में 14 हजार रुपये लग रहे हैं. किराना दुकानदार अमित कुमार के मुताबिक नयी फसल आने के बाद ही कीमत में गिरावट की संभावना है. नयी फसल होली के बाद ही आने की संभावना है.
हरी सब्जी पहले ही कर रही जेब ढीली : दाल के अलावा हरी सब्जी भी रसोई का बजट बिगाड़ रही है. लोगों को हरी सब्जी खरीदने में पसीने आ रहे हैं.
हालात ये है कि अब लोग किलो की जगह पाव में सब्जी खरीदकर अपना काम चलारहे हैं.लोग अपनी पसंदीदा सब्जी की जगह विकल्प के तौर पर उपलब्ध सस्ती सब्जी से ही काम चला रहे हैं.एक साधारण परिवार को प्रतिदिन सब्जी में 150 से 200 रुपये खर्च करना पड़ रहा है.
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