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बच्चे पढ़ने को हुए खानाबदोश

लखीसराय: जिले में 113 नवसृजित प्राथमिक विद्यालय, भवन के अभाव में कभी यहां तो कभी वहां संचालित होता है. इन विद्यालयों में नामांकित लगभग 11 हजार छात्र-छात्रओं की हालत खानाबदोश जैसी हो गयी है. बच्चों की ऐसी स्थिति से उनके अभिभावक भी परेशान हैं. इन विद्यालयों में पढ़ने वाले नौनिहालों को कभी इस दरवाजे तो […]

लखीसराय: जिले में 113 नवसृजित प्राथमिक विद्यालय, भवन के अभाव में कभी यहां तो कभी वहां संचालित होता है. इन विद्यालयों में नामांकित लगभग 11 हजार छात्र-छात्रओं की हालत खानाबदोश जैसी हो गयी है. बच्चों की ऐसी स्थिति से उनके अभिभावक भी परेशान हैं. इन विद्यालयों में पढ़ने वाले नौनिहालों को कभी इस दरवाजे तो कभी उस दरवाजे पर संचालित विद्यालय में पढ़ना पड़ता है. दर्जनों विद्यालय ऐसे भी हैं, जहां बच्चों की कक्षा पेड़ के छांव तले लगती है.

घने कुहरे, तेज धूप, ठंडी हवा हवा या बारिश के बीच बच्चों को पढ़ाई करनी पड़ती है. ऐसे में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात बेमानी है. हालांकि प्रशासनिक पहल व जनप्रतिनिधियों के सहयोग से इनमें से 88 विद्यालयों को भूमि उपलब्ध हो पायी है. लेकिन 25 नवसृजित प्राथमिक विद्यालय को अब भी भूमि उपलब्ध नहीं हो पायी. जिन विद्यालय को भूमि उपलब्ध हो चुकी है, वहां भवन निर्माण के लिए प्राक्कलन तैयार किया जा रहा है और भवन निर्माण की राशि उपलब्ध कराने के लिए विभाग को लिखा गया है.

23 विद्यालय हुए हैं टैग

जिन विद्यालय में भूमि व भवन के कारण सर्वाधिक परेशानी हो रही थी, ऐसे 23 विद्यालयों को विभाग द्वारा चिह्न्ति कर डेढ़ वर्ष पूर्व उन्हें समीप के प्राथमिक या मध्य विद्यालय में टैग कर संचालित किया जा रहा है. ऐसे विद्यालय जिनमें नवसृजित विद्यालय को टैग किया गया है, वहां दो शिफ्ट में विद्यालय का संचालन होता है. सुबह की शिफ्ट में नवसृजित विद्यालय एवं दोपहर 12 बजे से मूल विद्यालय की कक्षा का संचालन हो रहा है.

अभिभावक भी हैं परेशान

इन नवसृजित विद्यालय का भवन नहीं रहने के कारण यहां नामांकित छात्रों के साथ-साथ इनके अभिभावक भी परेशान हैं. सक्षम अभिभावक बेहतर भविष्य के लिए अपने बच्चों को निजी विद्यालय में पढ़ा रहे हैं. इन विद्यालयों में एमडीएम संचालन में भी परेशानी होती है. भवनहीन नवसृजित प्राथमिक विद्यालय में एमडीएम चलाना भी बड़ी समस्या है. भवन के अभाव में मध्याह्न् भोजन का चावल शिक्षकों को या तो घर में रखना पड़ता है या फिर किसी ग्रामीण को चावल रखने की व्यवस्था करनी होती है.

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