जो वर्तमान में यह एक से दो क्विंटल पैदा होने लगा. जिससे लागत पूंजी से कम पैदावार होने के परिणाम स्वरूप किसान बड़हिया टाल में चना, मसूर की खेती कम कर इसके बदले केराव, खेसारी एवं गेहूं आदि फसलों की बुआई प्रारंभ कर दी. हालांकि बड़हिया टाल की भूमि काली है. इसलिए उर्वरक शक्ति अत्यधिक होने से इस मिट्टी में सभी फसल की पैदावार होती है.
जिसमें साग सब्जी, प्याज, मकई तथा धान की भी खेती की जाती है. लेकिन बड़हिया टाल दलहन एवं तेलहन फसलों के लिए बिहार में प्रसिद्ध है. इस वर्ष भी बड़हिया में रबी फसल का उत्पादन लागत पूंजी से कम हुई जिसमें मसूर तीन से चार मन, केराव छह से आठ मन प्रति बीघा पैदावार हुआ.जिससे स्थानीय दाल मिल भी लगभग मृतप्राय हो गया है.जागरूक किसान महेश्वरी सिंह ने बताया कि किसानों के द्वारा कम्पोस्ट खाद एवं रसायनिक दवा का उपयोग करने से जमीन की उर्वरक शक्ति खत्म होती जा रही है. जिससे रबी फसल की पैदावार कम होती जा रहा है.