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हुक्का लोली खेलने की विशेष परंपरा

खगड़िया. रोशनी का त्योहार दीपावली में हुक्का लोली खेलने की परंपरा आज भी गांव में बरकरार है. शहर में पटाखों ने हुक्का लोली खेलने की परंपरा को धीरे धीरे अपने ओर खींच रहा है. ग्रामीण इलाकों में दीपावली के दिन अपने अपने घरों में कुल देवता, घर, खेत खलिहान, चापानल, तुलसी के पौधे एवं घर […]

खगड़िया. रोशनी का त्योहार दीपावली में हुक्का लोली खेलने की परंपरा आज भी गांव में बरकरार है. शहर में पटाखों ने हुक्का लोली खेलने की परंपरा को धीरे धीरे अपने ओर खींच रहा है. ग्रामीण इलाकों में दीपावली के दिन अपने अपने घरों में कुल देवता, घर, खेत खलिहान, चापानल, तुलसी के पौधे एवं घर के पुरुषों के लिए जूट के पौधे से निकाला गया संठी का हुक्का लोली बनाया जाता हैं. दीपावली के दिन घर घर में लक्ष्मी पूजा के बाद हुक्का लोली खेला जाता हैं. ओर घर में माता लक्ष्मी के आगमन हेतु विनती करते हैं. हुक्का लोली खेलने के बाद घर घर जाकर लोग बुजुर्ग से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
आकाश दीप जलाने की परंपरा भी सिमट रही
कार्तिक मास में दीपावली के मौके पर आकाश दीप जलाने की परंपरा सदियों पुरानी है. आकाश दीप पितरों एवं देवों की राह आलोकित करते हैं.
एक समय था जब लोगों में होर मची रहती थी कि दीपावली के समय किसका आकाश दीप सबसे ऊंचा रहेगा. लेकिन अब वह उमंग खत्म हो गया है. ओर छत की ऊंचाई तक की सिमट गया हैं आकाश दीप जलाने की परंपरा. बड़े बड़े ऊंचाई की बांस पर आकाश दीप टिमटिमाते नजर आते थे. लेकिन अब लोगों की व्यस्तता ने पुरानी परंपरा को पीछे छोड़ दिया. आकाश दीप लोग बांस के कमाची ओर सप्तरंग के कागजों से लोग अपने अपने तरीके से झमकदार बनाते थे.
ग्रामीण इलाकों में आज इक्का दुक्का लोग बनाते हैं. लेकिन शहरी क्षेत्रों में रेडिमेड प्लास्टिक पन्नी के आकाश दीप खरीदकर काम चला लेते हैं. दीपावली से लगातार छठ पूजा तक ग्रामीण इलाकों में आकाश दीप कई आकृति के हवाई जहाज, दिल नुमा, स्टार, त्रिभुजाकर, गोलाकार, आदि रातों में टिमटिमाते नजर आते हैं.

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