दुर्भाग्य. गांवों में रोजगार मिलता, तो शायद नहीं जाती मजदूरों की जान
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कटिहार में दम तोड़ रही मनरेगा
दुर्भाग्य. गांवों में रोजगार मिलता, तो शायद नहीं जाती मजदूरों की जान जिले में मनरेगा पूरी तरह दम तोड़ रही है. चालू वित्तीय वर्ष के आठ महीना समाप्त होने को हैं. मनरेगा की विभागीय वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार तक इस चालू वित्तीय वर्ष में मात्र 35 मजदूरों को ही सौ दिन का रोजगार […]
जिले में मनरेगा पूरी तरह दम तोड़ रही है. चालू वित्तीय वर्ष के आठ महीना समाप्त होने को हैं. मनरेगा की विभागीय वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार तक इस चालू वित्तीय वर्ष में मात्र 35 मजदूरों को ही सौ दिन का रोजगार मिल पाया है.
कटिहार : इंदौर-पटना एक्सप्रेस हादसे में कटिहार जिले के पांच मजदूरों की मौत के लिए मौजूदा व्यवस्था भी कम जिम्मेदार नहीं है. मंगलवार की शाम मजदूरों का शव भी कटिहार लाया गया. सरकारी, गैरसरकारी व राजनीति से जुड़े हर तबके के लोग ट्रेन हादसे में हुई मौत को भले ही दुखदायी बता रहे हों, लेकिन शासन प्रशासन के लिए भी यह एक बड़ा सवाल है कि अगर गांव के लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध हो जाता, तो वे दूसरे बड़े शहरों में रोजगार के लिए पलायन नहीं करते.
यह साफ हो चुका है कि ट्रेन हादसे में कटिहार के जिन 14 लोग सवार थे, वे सभी निर्माण मजदूर के रूप में कार्यरत थे. वहां काम बंद होने की वजह से ही अपने गांव लौट रहे थे. इनमें पांच की मौत ट्रेन हादसे में हो गयी. मनरेगा के तहत मजदूर को 100 दिन साल में रोजगार की गारंटी दी जानी है. रोजगार नहीं दिये जाने के आलोक में बेरोजगारी भत्ता दिये जाने का प्रावधान है. पर, कटिहार जिले में मनरेगा पूरी तरह दम तोड़ रही है. चालू वित्तीय वर्ष के आठ महीना समाप्त होने को हैं. मनरेगा की विभागीय वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार तक इस चालू वित्तीय वर्ष में मात्र 35 मजदूरों को ही सौ दिन का रोजगार मिल पाया है.
बड़ी संख्या में मजदूर करते हैं पलायन
गांव में काम नहीं मिलने की वजह से कटिहार जिला सहित सीमांचल के इलाके से बड़ी संख्या में लोग दूसरे बड़े शहरों में काम की तलाश में पलायन करते हैं. कटिहार जिले के कई क्षेत्रों से लोग विभिन्न ट्रेडों में काम करने के लिए दूसरे बड़े शहर जाते हैं. कटिहार से अमृतसर जाने वाली आम्रपाली एक्सप्रेस, जोगबनी-आनंद बिहार सीमांचल एक्सप्रेस सहित कटिहार से गुजरने वाली कई प्रमुख ट्रेनों में मजदूरों की भीड़ पलायन करने की व्यथा को बयां करने के लिए काफी है. मजदूरों के पलायन के ट्रांजिट प्वाईंट के रूप में भी कटिहार जंकशन जाना जाता है. त्योहारों के समय मजदूर बड़े शहरों से काम कर कटिहार लौटते हैं.
प्रशासन के पास नहीं है आंकड़ा : कटिहार जिले से कितने मजदूरों का पलायन हुआ है या कितने मजदूर दूसरे बड़े शहरो में काम कर रहे हैं. इसका कोई आंकड़ा स्थानीय जिला प्रशासन के पास नहीं है. प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार, इस तरह की कोई व्यवस्था विभाग के स्तर पर नहीं की गयी है कि दूसरे बड़े शहरों में काम करने वाले मजदूरों का स्थानीय प्रशासन के पास पूरा विवरण हो. यह मौजूदा व्यवस्था पर भी बड़ा सवाल खड़ा करता है कि यहां के मजदूर दूसरे बड़े शहरों में काम करते हैं,
लेकिन प्रशासन को उसकी जानकारी नहीं है. जब कोई बड़ा हादसा होता है, तब मृत के परिजनों को अनुदान राशि देकर अपने दायित्व को इति श्री कर लिया जाता है. कोई मजदूर हादसा का शिकार नहीं हो, इसके लिए कोई व्यवस्था सरकार या प्रशासन की तरफ से अब तक नहीं की गयी है.
कहते हैं श्रम अधीक्षक : श्रम अधीक्षक प्रशांत राहुल ने पलायन करने वाले मजदूरो के संदर्भ में कहा कि कटिहार जिले से कितने मजदूर दूसरे बड़े शहर में काम करते हैं. इसका कोई आंकड़ा स्थानीय स्तर पर उपलब्ध नहीं है.
जिले में हैं 460955 जॉब कार्डधारक
मात्र 35 मजदूरों को ही मिला 100 दिन का रोजगार
मजदूरों के पलायन को रोकने के लिए पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम लागू किया. पर, कटिहार जिले में मनरेगा पूरी तरह दम तोड़ रहा है. चालू वित्तीय वर्ष यानी 2016-17 के आठ माह पूरा होने को हैं, लेकिन इस अवधि में मात्र जिले के 35 मजदूरों को ही 100 दिन का रोजगार मिल पाया है, जबकि जिले में जॉब कार्ड धारियों की संख्या 460955 है. मनरेगा के विभागीय वेबसाइट के अनुसार, बुधवार तक इन जॉब कार्ड धारियों में 34516 मजदूरों को ही काम मिल सका है. यह आंकड़ा मनरेगा की कुव्यवथा बयां करने के लिए काफी है.
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