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कॉल ड्रॉप बना जी का जंजाल

मोबाइल उपभोक्ता इन दिनों कॉल ड्रॉप की समस्या से जूझ रहे हैं. इस समस्या से न सिर्फ उनकी बातचीत प्रभावित होती है बल्कि उन्हें पैसे की भी चपत लगती है. कटिहार : मोबाइल उपभोक्ताओं के लिए कॉल ड्रॉप की समस्या अब नासूर बनती जा रही है. यह समस्या किसी एक नेटवर्क प्रदाता की नहीं है […]

मोबाइल उपभोक्ता इन दिनों कॉल ड्रॉप की समस्या से जूझ रहे हैं. इस समस्या से न सिर्फ उनकी बातचीत प्रभावित होती है बल्कि उन्हें पैसे की भी चपत लगती है.

कटिहार : मोबाइल उपभोक्ताओं के लिए कॉल ड्रॉप की समस्या अब नासूर बनती जा रही है. यह समस्या किसी एक नेटवर्क प्रदाता की नहीं है बल्कि सभी निजी आपरेटर्स व बीएसएनएल की है. निजी आपरेटर्स व बीएसएनएल को मिलाकर लाखों की संख्या में मोबाइल उपभोक्ता इस जिले में हैं.

अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस तरह से मोबाइल ऑपरेटर्स अपने उपभोक्ताओं को आर्थिक चपत लगा रहे हैं. हालांकि टेलिकॉम रेग्यूलेटरी ऑथोरिटी ऑफ इंडिया (ट्राइ) के अनुसार कॉल ड्रॉप होने पर हर्जाना ऑपरेटर्स को देना सुनिश्चित किया गया है लेकिन इस दिशा में सख्ती नहीं बरते जाने का ही परिणाम है कि मोबाइल उपभोक्ताओं को बड़े पैमाने पर आर्थिक चपत लग रही है. निजी ऑपरेटर्स कॉल ड्रॉप की बहुत कम संख्या को गिनाते हैं लेकिन उपभोक्ताओं की माने तो यह संख्या थोड़ी नहीं बल्कि बहुतायत में है. लिहाजा, भागदौड़ भरी जिंदगी में जहां मोबाइल उपभोक्ताओं के पास वक्त का अभाव है वहीं मोबाइल ऑपरेटर्स इस समस्या को दूर करने के बजाये बहाना ढूंढ़ते अधिक नजर आते हैं.

कहते हैं पदाधिकारी : इस बाबत अनिल कुमार, डीजीएम, बीएसएनएल कहते हैं कि ऑप्टीकल फाइवर के कट जाने से मीडिया जंक्शन में खराबी आ जाती है. जिस कारण कॉल ड्रॉप की समस्या उत्पन्न हो रही है. श्री कुमार कहते हैं कि इस दिशा में काम चल रहा है और बीटीएस टावर की संख्या बढ़ाकर व रूट डायवर्ट कर लोगों को इस समस्या से निजात दिलाने की तैयारी चल रही है.

खराब मौसम और निर्माण कार्य को ठहराते हैं जिम्मेवार

कॉल ड्रॉप की समस्या सामान्य मौसम में नहीं होती बल्कि बरसाती दिनों यह समस्या अधिक हो जाती है.

सैटेलाइट सिग्नल और टावर सिग्नल में लिंक नहीं हो पाने के कारण यह समस्या विकराल हो जाती हैं. विशेषज्ञों का भी कहना है कि मौसम खराब होने के कारण सिग्नलिंग में खराबी आ जाती है और फ्रिक्वेंसी डायवर्ट हो जाता है. इस वजह से कॉल ड्रॉप आम हो जाती है. विशेषज्ञ कहते हैं कि वायरलेस होने के कारण यह सर्विस फ्रिक्वेंसी पर निर्भर रहती है और सिग्नल में थोड़ी बहुत रूकावट या फिर दिक्कत आने पर कॉल ड्रॉप की समस्या खड़ी हो जाती है. मौसम साफ होने के बाद तकनीकी टीम टावर के सिग्नल का मिलान कर फ्रिक्वेंसी को सेट करते हैं, तब जाकर मोबाइल में टावर आता है.

वायरयुक्त सेवा में ही किसी भी मौसम में साफ व स्पष्ट बातचीत करने का मौका मिल पाता है. इस सेवा में न तो सिग्नल और न ही फ्रिक्वेंसी का झमेला होता है. इसके अला निर्माण कार्य व सड़क चौड़ीकरण के कारण भी यह समस्या उत्पन्न हो जाती है. सड़क चौड़ीकरण व अन्य निर्माण कार्य के कारण आमतौर पर ऑप्टीकल फाइवर में परेशानी आ जाती है.

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