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जनतंत्र के राजनीति पर धनतंत्र हो रहा प्रभावी

जनतंत्र के राजनीति पर धनतंत्र हो रहा प्रभावी फोटो नं. 40 से 45 कैप्सन-आमलोगों की प्रतिक्रिया प्रतिनिधि, कुरसेलाजनतंत्र के राजनीति पर धनतंत्र प्रभावी हो रही है. राजनीति में जन सेवा की भावना गौण पड़ती जा रही है. नियत और नीतिगत सिद्धांत मिट रहे हैं. सत्ता कुर्सी की लोलूपता राजनीति स्तर को गिरा रही है. यह […]

जनतंत्र के राजनीति पर धनतंत्र हो रहा प्रभावी फोटो नं. 40 से 45 कैप्सन-आमलोगों की प्रतिक्रिया प्रतिनिधि, कुरसेलाजनतंत्र के राजनीति पर धनतंत्र प्रभावी हो रही है. राजनीति में जन सेवा की भावना गौण पड़ती जा रही है. नियत और नीतिगत सिद्धांत मिट रहे हैं. सत्ता कुर्सी की लोलूपता राजनीति स्तर को गिरा रही है. यह बातें बुद्धिजीवी तबके के कुछ खास व्यक्तियों का कहना है. इनका कहना है कि राजनीति मूल्यों में आ रहे गिरावटों से जनतंत्र में गरीबों के लिए राजनीति करना बुते से बाहर की बात हो गयी है. शिक्षाविद प्रभाकर झा का कहना था कि राजनीति में धनतंत्र में पैर जमा लिया है. दलों से टिकट पाना और चुनाव लड़ना सब रुपयों का खेल हो गया है. गरीबों के लिए राजनीति करना टेढ़ी खीर हो गयी है. लोकतंत्र के मजबूती के लिये ये हालात अच्छे नहीं हैं. जाति धर्म के सीमाओं में बंध कर राजनीतिक की दिशा भटकाउ की ओर हो गयी है. जनमत का पक्ष स्वच्छ राजनीति की ओर होना चाहिये ताकि राजनीतिक मूल्यों में आ रही गिरावटें दूर हो सके. व्यवसायी बिजय कुमार जायसवाल का कहना था कि पूर्व की राजनीति जन कल्याण के सेवा के लिए होती थी. प्रतिनिधि नियत और नीतिगत सिंद्धांतों को अपना कर राजधर्म का पालन करते थे. अब वह बातें राजनीति से दूर हो गयी है. लोकतंत्र में लोक धर्म सर्वोपरि होता था. दंत चिकित्सक डॉ रमण का कहना था कि निहित स्वार्थों में राजनीति के सिद्धांत बौने पड़े रह हैं. गरीबों के लिए पटना-दिल्ली की राजनीति दूर पड़ गयी है. जनतंत्र में सुधार के लिए आम-अवाम को सोच-समझ कर निर्णय लेने की जरूरत है. बदलाव लाने के लिए खुद को बदलने की आवश्यकता है. भावनाओं से उपर उठ कर राष्ट्र, राज्य और समाज के लिए सोचना होगा. पहलवानी में सोहरत बटोरने वाले राधा झा का कहना था कि राजनीति में नीति सिद्धांत की बात समाप्त होती जा रही है. चुनावी वादे इरादे छलावा होकर रह गया है. ऐसे में एक अच्छे निष्ठावान प्रतिनिधि का चयन करना जनतंत्र के लिये बेहतर है. कृषक विभीषण पंडित का कहना था कि राजनीति में आये खामियों को जनता को अधिकार प्रयोग से खुद दूर करना होगा. गंदगियां सफाई से खत्म होती है. जिसके लिये जनता को खुद कदम बढ़ाने होंगे. भावनाओं से उपर निर्णय लेने की क्षमता लेनी होगी. सामाजिक कार्यकर्ता बरुण मंडल का कहना था कि शिक्षित और जागरूक समाज के निर्माण से स्वच्छ राजनीति के आधार तय किये जा सकते हैं. शिक्षा ज्ञान से निर्णय लेने में हम खुद को सक्षम बना सकते हैं.

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