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प्रतिबंध के बावजूद शहर में हो रहा पॉलीथिन का यूज
भभुआ सदर : ग्रीन सिटी व क्लीन सिटी के बाद विकसित भभुआ के लिए डीएम राजेश्वर प्रसाद सिंह ने नगर पर्षद को शहर सहित पूरे जिले में प्लास्टिक (पॉलीथिन)की खरीद-बिक्री पर रोक लगाने का निर्देश दिया था. नगर पर्षद ने भी ध्वनि विस्तारक यंत्र से घोषणा करा कर प्लास्टिक की बिक्री पर रोक लगाने की […]
भभुआ सदर : ग्रीन सिटी व क्लीन सिटी के बाद विकसित भभुआ के लिए डीएम राजेश्वर प्रसाद सिंह ने नगर पर्षद को शहर सहित पूरे जिले में प्लास्टिक (पॉलीथिन)की खरीद-बिक्री पर रोक लगाने का निर्देश दिया था.
नगर पर्षद ने भी ध्वनि विस्तारक यंत्र से घोषणा करा कर प्लास्टिक की बिक्री पर रोक लगाने की बात कही थी़ बावजूद बिना रोक-टोक के अब भी प्लास्टिक की बिक्री और इसका प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है. शहर व गांवों की गलियों से ले कर खेतों तक के लिए मुसीबत बन चुका प्लास्टिक का उपयोग नहीं रुक रहा है़ किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं होते देख दुकानदार प्लास्टिक का प्रयोग कर रहे हैं. शहरवासी भी प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग करने से बाज नहीं आ रहे हैं.
गौरतलब है कि इस प्लास्टिक के कचरे का जैविक विघटन न होने के कारण यह कई सालों तक एक ही स्थिति में पड़ा रहता है़ इससे जमीन की नमी धारण करने की क्षमता कम हो जाती है़ घटिया रसायन मिट्टी में मिल कर उसे जहरीला बना रहे हैं. कचरे में फेंके पॉलीथिन को पशु खा लेते हैं. यह उनके लिए खतरनाक साबित होता है. उनमें बांझपन व दूध कम होने की शिकायतें रहती हैं.
खुल कर हो रहा उपयोग
प्रतिबंध होने के बावजूद शहर के हर दुकानदार व व्यापारी पॉलीथिन का उपयोग खुलेआम कर रहे हैं. ग्राहक भी सामान लेने से नहीं कतराते. प्लास्टिक की थैलियों के प्रयोग से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है. एसपी हरप्रीत कौर ने सुप्रीम कोर्ट व राज्य सरकार के निर्देश के बाद इस पर नजर रखने की हिदायत दी थी. कई जगहों पर पॉलीथिन पकड़े भी गये थे़ शहर के चंद्रप्रकाश आर्य, पूर्व नगर अध्यक्ष अमरदेव सिंह, मिथिलेश सिंह, गौतम सिंह आदि ने जिला प्रशासन से मांग की है कि पॉलीथिन के उपयोग पर रोक लगाने के लिए सख्त कदम उठाये़
कचरे में 60 प्रतिशत मात्रा पॉलीथिन की
शहर से निकलनेवाले कूड़े में गंदगी के अलावा कागज, कपड़े व पॉलीथिन होते हैं. करीब दस वर्ष पहले शहर से जो कूड़े निकलते थे, उसमें पॉलीथिन की मात्रा आधे प्रतिशत से भी कम होती थी़ अब कचरे में प्लास्टिक की मात्रा करीब 60 प्रतिशत होती है. इसमें पॉलीथिन बैग निस्तारण एक गंभीर समस्या बन चुकी है़ यह किसी भी हालत में नष्ट नहीं होती है. कूड़े में निकलने वाले काफी पदार्थ अपने आप नष्ट हो जाते हैं, कुछ खाद के रूप में प्रयोग होते हैं. पॉलीथिन नष्ट नहीं होती़
कई बीमारियों का बन रहा कारण
डाॅ संतोष सिंह बताते हैं कि पॉलीथिन नष्ट नहीं होती़ इस कचरे को आग लगा दी जाये, तो इससे जहरीला धुआं निकलता है, जो वातावरण के लिए हानिकारक है. इससे अस्थमा के मरीजों को भी भारी दिक्कत पैदा होती है. पॉलीथिन से सांस की तकलीफ तथा एलर्जी की बीमारी भी अधिक फैलती है, जो जानलेवा भी साबित हो सकता है.
पर्यावरण चक्र को कर देती है अवरुद्ध
प्लास्टिक कचरे के जमीन में दबने की वजह से वर्षा जल का भूमि में संचरण नहीं हो पाता। परिणामस्वरूप भूजल स्तर गिरने लगता है. प्लास्टिक कचरा प्राकृतिक चक्र में नहीं जा पाता, जिससे पूरा पर्यावरण चक्र अवरुद्ध हो जाता है. पॉलीथिन पेट्रो-केमिकल उत्पाद है, जिसमें हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल होता है.
रंगीन पॉलीथिन मुख्यत: लेड, ब्लैक कार्बन, क्रोमियम, कॉपर आदि के महीन कणों से बनता है, जो जीव-जंतुओं व मनुष्यों सभी के स्वास्थ्य के लिए घातक है. मोटी पॉलीथिन में कार्बन और हाइड्रोजन की विशेष यूनिट होती है.यह ऐसा रसायनिक जोड़ है, जो टूट नहीं सकता. यही कारण है कि मोटा पॉलीथिन सड़ती नहीं है।
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