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कमीशन के चक्कर में गयी बच्चे की जान !

सदर अस्पताल में डॉ राजेश ने बच्चे को भेजा था एसएनसीयू रास्ते में आशा ने परिजनों को बरगला कर भेज दिया निजी हॉस्पिटल निजी अस्पताल में हुई बच्चे की मौत भभुआ सदर. सोमवार को सदर अस्पताल में मानवता उस वक्त शर्मशार हो गयी जब कथित तौर पर एक आशा कार्यकर्ता द्वारा कमीशन के चक्कर में […]

सदर अस्पताल में डॉ राजेश ने बच्चे को भेजा था एसएनसीयू

रास्ते में आशा ने परिजनों को बरगला कर भेज दिया निजी हॉस्पिटल

निजी अस्पताल में हुई बच्चे की मौत

भभुआ सदर. सोमवार को सदर अस्पताल में मानवता उस वक्त शर्मशार हो गयी जब कथित तौर पर एक आशा कार्यकर्ता द्वारा कमीशन के चक्कर में एक बीमार बच्चे के साथ रहे उसके परिजनों को बरगला कर निजी क्लिनिक में ले जाने के दौरान एक पांच वर्षीय बच्चे की मौत हो गयी. घटना के के बारे में पता चला है कि भगवानपुर प्रखंड के साहपुर गांव निवासी गुरुदयाल बिंद अपने पांच वर्षीय बच्चे को काफी बीमार हालत में इलाज के लिए सदर अस्पताल लेकर आये. यहां इमरजेंसी में बच्चे की जांच करते हुए डाॅ राजेश कुमार सिंह ने बच्चे को ऑक्सीजन चढ़ाने की जरूरत बता कर बच्चे को एसएनसीयू में भेज दिया.

लेकिन, एसएनसीयू में नवजात बच्चों का इलाज होता हुआ बता कर वहां से बच्चे के परिजनों को पुन: वापस इमरजेंसी में ऑक्सीजन चढ़वाने के लिए भेज दिया गया. अभी बीमार बच्चे के परिजन रोते-धोते इमरजेंसी की ओर जा ही रहे थे कि बीच राह में मिली एक आशा द्वारा शहर के जीवनदीप नामक एक निजी क्लिनिक में जाने की सलाह दे दी गयी. बच्चे का बढ़िया इलाज कराने की बात कह कर कथित तौर पर वह आशा बच्चे के साथ उसके परिजनों को लेकर सदर अस्पताल के सामने खड़े एक ऑटो पर जा बैठी. मौके पर मौजूद लोगों के मुतािबक, आशा बच्चे के परिजनों को निजी क्लिनिक में जाने का दबाव बना रही थी.

पता चला है कि इलाज में देरी के चलते निजी क्लिनिक तक पहुंचने से पहले ही बच्चे की मौत हो गयी. रास्ते में ही. निजी क्लिनिक के डॉक्टर ने भी वहां पहुंचने के बाद बच्चे की मौत की पुष्टि कर उसके परिजनों को लौटा दिया.

आये दिन सदर अस्पताल में अकारण घूम रही आशा कार्यकर्ताओं द्वारा कमीशन का खेल चला कर मरीज के परिजनों को बरगलाया जा रहा है. निजी क्लिनिक में ले जाकर पैसे की उगाही की जा रही है. अस्पताल प्रशासन सहित जिले के बड़े साहबों द्वारा भी सख्ती की हिदायत दी जाती है, लेकिन, इन आशा कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई नहीं होती. इसका खामियाजा गाहे-बगाहे अपंग होकर या फिर जान गवां कर लोग भुगत रहे हैं. मरीजों के परिजन आये दिन अपनों की मौत का मातम मनाने पर मजबूर होते हैं.

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