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बदलते ट्रेंड के साथ छोटा हो रहा बड़ा परदा
सुविधाओं की कमी व तकनीक के बढ़ते प्रभाव से सिमट रहे जिले के सिनेमाघर जिले के दो सिनेमाघर हो चुके हैं बंद, कमाई कम घाटा ज्यादा भभुआ (नगर) : करीब दो दशक में मनोरंजन का दायरा काफी विस्तृत हुआ है. बदलते संसाधनों ने आम जीवन शैली को ही नहीं बल्कि पारंपरिक ढांचे तक को प्रभावित […]
सुविधाओं की कमी व तकनीक के बढ़ते प्रभाव से सिमट रहे जिले के सिनेमाघर
जिले के दो सिनेमाघर हो चुके हैं बंद, कमाई कम घाटा ज्यादा
भभुआ (नगर) : करीब दो दशक में मनोरंजन का दायरा काफी विस्तृत हुआ है. बदलते संसाधनों ने आम जीवन शैली को ही नहीं बल्कि पारंपरिक ढांचे तक को प्रभावित किया है. तकनीक विकास के आगे सिनेमाघरों का व्यवसाय फीका पड़ने लगा है. केबुल चैनल्स, इंटरनेट, सीडी व स्मार्ट फोन की वजह से आज लोग सिनेमाघरों से मुंह मोड़ने लगे हैं.
फिल्मों की डिस्ट्रीब्यूशनशिप हुई महंगी, दर्शकों की सुविधाएं कम :फिल्मों की डिस्ट्रीब्यूटरशिप काफी महंगी होने व दर्शकों द्वारा आधुनिक सुविधाओं की मांग के कारण भी सिनेमाघर बंदी के कगार पर हैं. तकनीकी दिक्कतों के चलते इन सिनेमाघरों का उपयाेग किसी अन्य प्रायोजनों के लिए भी संभव नहीं हो पा रहा. ऐसे में करोड़ों की प्रॉपर्टी निरर्थक पड़ी है.
जादू शो व आइपीएल मैच का सहारा: अब तो शहर में स्थित सिनेमाघर अपने घाटे की भरपाई के लिए प्रदर्शनी, जादू टोना व आइपीएल मैचों का सीधा प्रसारण कर कुछ कमाई करने में जुटे हैं. सिनेमाघरों के व्यवसाय से जुड़े लोग अब किसी तरह मजबूरी में लोगों के मनोरंजन के लिए फिल्मों का प्रदर्शन कर रहे हैं.
इंटरनेट व केबुल चैनल्स का बढ़ा प्रभाव : एक समय था जब शहर के सिनेमाघरों में दोपहर व शाम के शो में टिकट मिलना मुश्किल होता था. लोग हॉल मैनेजर से अपने पूरे परिवार के साथ फिल्म देखने के लिए एडवांस में टिकट बुक करा लेते थे. लेकिन, जैसे-जैसे तकनीक की पहुंच आमलोगों के बीच बढ़ती गयी, वैसे वैसे शहर के सिनेमाघरों की ओर लोगों का रूख कम हो गया. पहले जब रिलीज के दो-चार महीने बाद भी फिल्में लगती थीं, तब भी दर्शक बड़ी उत्सुकता के साथ सिनेमाघरों तक पहुंचते थे. लेकिन, इंटरनेट के प्रभाव से रिलीज के दूसरे दिन ही इंटरनेट पर फिल्में उपलब्ध हो जाने से लोग घरों पर ही फिल्में देखना ज्यादा मुनासिब समझ रहे हैं.
भभुआ में रूपावली, तो मोहनिया में रामेश्वर छविगृह हो चुका है बंद: शहर में दुर्गा टॉकीज व मुंडेश्वरी चित्र मंदिर फिलहाल दो सिनेमाघर चल रहे हैं. 1961 में बना रूपावली सिनेमा हाॅल अब बंद हो चुका है. मोहनिया में रामेश्वर छविगृह भी बंद हो चुका है. यहां मात्र एक कुमार टॉकीज ही है. इन सिनेमाघरों का बंद होना दर्शाता है कि मनोरंजन को लेकर दर्शकों का मिजाज सहित कई परिस्थितियां कैसे तेजी से बदली हैं.
अब भोजपुरी फिल्में ही बन रहीं कमाई का सहारा: जिले के ज्यादातर सिनेमाघरों में भोजपुरी फिल्में ही चल रही हैं. इसकी मूल बजह हिंदी सिनेमा के दर्शकों का दायरा या मूड बदलाना भी. यह भी कह सकते हैं कि हिंदी सिनेमा के दर्शक फिल्मों को लेकर सलेक्टिव हो गये हैं. ऐसे में सिनेमाघर वालों की कमाई का मुख्य जरिया भोजपुरी फिल्में ही बनी हैं.
इसके पीछे आर्थिक कारण भी है. एक तरफ जहां हिंदी फिल्में महंगी हैं, वहीं भोजपुरी फिल्में कम पैसे में अधिक मुनाफा देने वाली हैं. ये फिल्में इंटरनेट पर नहीं मिलती व केबुल चैनल्स पर भी ज्यादा नहीं दिखती. भोजपुरी फिल्मों का दर्शक वर्ग छोटा है.
हिंदी फिल्मों का स्टैंडर्ड लेबल ऊंचा होने की वजह से क्षेत्रीय लोगों को भोजपुरी भाषा की फिल्में ज्यादा पसंद आती है. ऐसे में ये दर्शक सिनेमाघरों तक पहुंच जाते हैं.
सिंगल स्क्रीन से ज्यादा मल्टीप्लेक्स की मांग : बदलते समय के साथ लोगों का फिल्मों के देखने का टेस्ट भी बदला है. ऐसे में दर्शक सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल्स की जगह मल्टीप्लेक्स को ज्यादा तव्वजों दे रहे हैं. दर्शक सिनेमा देखने के साथ सुविधाओं की भी डिमांड कर रहे हैं. सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल्स में दर्शकों को मनमाफिक सुविधाएं नहीं मिलतीं, ऐसे में उनका रूख मल्टीप्लेक्स की ओर होता है.
इस व्यवसाय में अब सिर्फ घाटा
अब तो किसी तरह सिनेमाघर चलाया जा रहा है. इस व्यवसाय में अब सिर्फ घाटा ही हो रहा है. एक दौर था जब दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे, हम आपके हैं कौन, करन अर्जुन, जैसी फिल्में तीन से चार हफ्ते चलती थीं. लेकिन, अब दर्शकों के न आने से कोई भी फिल्म एक हफ्ते चल जाये वही काफी है. दर्शकों के अभाव में नाइट शो पूरी तरह बंद कर दिया गया है.
राजेश कुमार सिंह, दुर्गा टॉकिज के संचालक
कर्मचारियों को तनख्वाह भी देने में मुश्किल
सिनेमाघर का व्यवसाय अब पूरी तरह फ्लॉप हो चुका है. कर्मचारियों को तनख्वाह तक देने में मुश्किल हो रही. सिर्फ जैसे-तैसे हाॅल को चलाया जा रहा है. लोगों को घर बैठे ही मनोरंजन का भरपूर साधन है. इसलिए लोग सिनेमाघरों से मुंह मोड़ रहे हैं.
कुंवर सिंह, मुंडेश्वरी चित्र मंदिर के संचालक
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