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पंचायतों मे शराबबंदी के माहौल को बिगाड़ सकते हैं प्रत्याशी !

पंचायत चुनाव. प्रचार हुआ तूफानी, सभी कर रहे जीत के दावे भभुआ(नगर) : जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आ रहा है. शराबबंदी को लेकर प्रशासन के समक्ष चुनौती बढ़ती जा रही है. कई प्रत्याशी अंतिम समय में झारखंड व यूपी से शराब लाकर उन लोगों को उपलब्ध कराने की फिराक में हैं, जो इसके बदले […]

पंचायत चुनाव. प्रचार हुआ तूफानी, सभी कर रहे जीत के दावे
भभुआ(नगर) : जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आ रहा है. शराबबंदी को लेकर प्रशासन के समक्ष चुनौती बढ़ती जा रही है. कई प्रत्याशी अंतिम समय में झारखंड व यूपी से शराब लाकर उन लोगों को उपलब्ध कराने की फिराक में हैं, जो इसके बदले वोट के इंतजाम कर सकते हैं.
खास तौर पर वैसे प्रत्याशी शराबबंदी के माहौल को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिन्होंने कानून तोड़कर कम समय में काफी संपत्ति अर्जित की है. उनके अंदर अभी भी यह धारणा बनी हुई है कि पैसा व प्रभाव के बल पर किसी भी कानून को ठेंगा दिखाया जा सकता है. चाहे वह शराबबंदी का ही कानून क्यों न हो. अपनी साजिश के पूर्वाभ्यास के तौर पर उन्होंने इका-दूका बोतल मंगा कर कहीं-कहीं अपने समर्थकों को पिलानी शुरू कर दी है. हालांकि यह काम खुलेआम न कर सुरक्षित ठिकानों पर किये जा रहे हैं, ताकि आम आदमी को इसकी भनक न लगे. सूत्रों की माने तो शराब छिपा कर रखे जाने की आशंका से भी पूरी तरह से इनकार नहीं किया जा सकता. गौरतलब है कि पुलिस की सख्ती का सकारात्मक असर देखने को मिल रहा है.
शराब की बिक्री के लिए बदनाम जगहों पर भी शराब का नामो निशान तक नहीं दिख रहा है. शराब पीने के अभ्यस्त लोग भी अब शराबबंदी की नीति की प्रशंसा करते देखे जा रहे हैं. लोगों का मानना है कि अभी की तरह मतदान के वक्त तक पुलिस की इस मामले में सख्ती जरूरी है.
कल तक घूंघट वाली बहुरिया, आज मुखिया पद की दावेदार: पंचायत चुनाव में आधी आबादी की भागीदारी सिर चढ़ कर बोल रही है. कल की घूंघट वाली बहुरिया आज मुखिया पद की दावेदार है. चिलचिलाती गरमी और लू के थपेड़ों के बीच गांव-गांव व घर-घर के चौखट पर पहुंच रही है. इस चुनाव में पर्दानशी महिलाएं भी मैदान में हैं. खैर पंचायतों में जो चर्चा का विषय है, वह नयी नवेली बहुरियों को लेकर है, जो एक दो साल पहले घूंघट की आड़ अपने ससुराल आयी थी. वह आज पंचायत के विकास की बात कर रही है.
यह अलग बात है कि महिला प्रत्याशी से अगर कोई पूछे कि पंचायत में कुल कितने गांव है और मतदाताओं की आबादी कितनी है, तो शायद कोई महिला प्रत्याशी सही जवाब दे पाये. सरकार ने भले ही महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया हो, पर चुनाव भले ही महिलाएं लड़ रही है. जीत की रणनीति उनके पति ही तैयार कर रहे हैं.
प्रचार हुआ तेज: चुनाव की तिथि नजदीक आते ही गांव में सियासी पारा चढ़ गया है. रामनवमी के त्योहार बीतने के साथ ही प्रत्याशियों का चुनावी प्रचार तूफानी हो गया है, जिसका असर गांव में दिख रहा है. चुनाव नजदीक आने के साथ ही प्रत्याशी अपने समर्थकों की लामबंदी में जुट गये हैं. समर्थकों के सहारे चुनावी बैतरणी पार लगाने की कवायद में प्रत्याशी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
एक ही पद के लिए एक गांव से कई प्रत्याशी होने से अब माहौल में तनाव देखा जा रहा है. पंचायत चुनाव के धुरंधर हवा के रूख को पहचानने व उसे अपनी ओर मोड़ने के लिए माहौल को गरमा रहे हैं, जिस कारण गांवों में गुटबंदी की स्थिति बन गयी है. चुनाव के अंतिम दिनों में प्रत्याशी हर नीति अपना रहे हैं. इसका परिणाम है कि गांवों में गोलबंदी का दौर तेज हो गया है. पंचायत चुनाव को लेकर शुरू हुए तनाव व बैर विरोध का यह प्रमुख कारण बन गया है. पंचायत चुनाव का असर लोगों पर इतना अधिक हो गया है कि मौसम की गरमी की फिक्र ही नहीं रही.
गांव के चौपाल, खेत, खलिहान, नुक्कड़ों के साथ सार्वजनिक स्थलों पर सिर्फ चुनाव की ही बातें हो रही है और हर प्रत्याशी अपने को बेहतर बताने और अपने जीत को पुख्ता करने में जुटा हुआ है.

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