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गुरुजी कर रहे क्लर्क का भी काम – कैंपस – लीड – लोगो लगायें

गुरुजी कर रहे क्लर्क का भी काम – कैंपस – लीड – लोगो लगायेंजिले के हाइस्कूल व प्लस-टू स्कूलों में लिपिक व प्रधान सहायक के पद रिक्तअपग्रेड होने के बाद भी प्लस-टू स्कूलों में नहीं हुई लिपिकों की बहालीगैर शैक्षणिक कार्यों में शामिल होने से पठन-पाठन हो रहा है प्रभावितप्रतिनिधि, भभुआ (नगर)जिले के सरकारी हाइस्कूलों […]

गुरुजी कर रहे क्लर्क का भी काम – कैंपस – लीड – लोगो लगायेंजिले के हाइस्कूल व प्लस-टू स्कूलों में लिपिक व प्रधान सहायक के पद रिक्तअपग्रेड होने के बाद भी प्लस-टू स्कूलों में नहीं हुई लिपिकों की बहालीगैर शैक्षणिक कार्यों में शामिल होने से पठन-पाठन हो रहा है प्रभावितप्रतिनिधि, भभुआ (नगर)जिले के सरकारी हाइस्कूलों व प्लस-टू स्कूलों में लिपिकों की कमी व लिपिक का पद स्वीकृत नहीं होने से शिक्षकों को ही छात्र-छात्राओं को पढ़ाने से लेकर क्लर्क तक का काम करना पड़ रहा है. खासकर, उत्क्रमित प्लस-टू स्कूलों में सरकार द्वारा लिपिक के पद स्वीकृत नहीं किये गये हैं, जिस कारण गुरुजी को हेडमास्टर से लेकर क्लर्क्का कामकाज भी करना पड़ रहा है. वहीं, हाइस्कूलों व उत्क्रमित प्लस-टू विद्यालयों में सहायक लिपिकों का भी टोटा है. ऐसे में गुरुजी ही सहायक लिपिक बन कर डाक से लेकर विद्यालय के बही खाते को दुरुस्त करते हैं. शिक्षकों के गैर शैक्षणिक कार्यों में लगे होने से पठन-पाठन भी प्रभावित होता है. गौरतलब है कि सरकार की तरफ से सभी तरह के स्कूलों में पर्याप्त मात्रा में शिक्षकों की भी बहाली नहीं होती, जिससे कई स्कूलों में शिक्षकों के काफी पद भी रिक्त हैं. डाक पहुंचाने में ही गुजर जाता है महीनालिपिक का पद रिक्त होने के कारण विद्यालयों में डाक का कामकाज देख रहे शिक्षकों का पूरा महीना डाक बनाने व पहुंचाने में बीत जाता है. विद्यालय में नामांकन सूचना तैयार करने से लेकर, छात्रवृत्ति, पोशाक, साइकिल, मिड-डे मिल योजना की मासिक विवरणी जैसी कई रिपोर्ट तैयार करनी होती है और सभी रिपोर्ट सरकार के पास भेजनी भी होती है. लिहाजा, शिक्षण के साथ-साथ लिपिक का काम करनेवाले शिक्षक परेशान रहते हैं. 85 में सिर्फ 37 हाइस्कूलों में हैं लिपिक जिले में प्लस टू स्कूलों व हाइस्कूलों की संख्या 85 हैं. इनमें सिर्फ 37 स्कूलों में ही लिपिक कार्यरत हैं, जबकि अन्य जगहों पर शिक्षक ही लिपिक का काम कर रहे हैं. प्लस-टू स्कूलों के शिक्षकों का कहना है कि वर्ष 1985 से ही स्कूलों में लिपिकों की बहाली नहीं हुई है. कई स्कूलों में आदेशपाल व क्लर्क के पद स्वीकृत नहीं हैं. शिक्षकों का कहना है कि जब से हाइस्कूलों को प्लस-टू स्कूलों में उत्क्रमित किया गया है, तब से काम दोगुना बढ़ गया है, लेकिन, प्रधान सहायक की बहाली ठंडे बस्ते में हैं. अब ऐसी स्थिति में जिन शिक्षकों के कंधों पर पढ़ाने के साथ-साथ विद्यालय के अन्य कार्यों का दायित्व है, उनकी परेशानी तो बढ़ेगी ही.

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