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बारिश हो या गरमी, काम तो करना है

भभुआ (नगर) : साहब! पेट की ज्वाला शांत करने के लिए लोग क्या कुछ नहीं करते, हम तो बस दो जून की रोटी के लिए मेहनत व ईमानदारी से काम कर रहे हैं. उक्त बातें बुधवार की दोपहर सड़क किनारे लगे एक टेकर पर बोरा लादने के लिए पीठ पर अनाज से भरे बोरे का […]

भभुआ (नगर) : साहब! पेट की ज्वाला शांत करने के लिए लोग क्या कुछ नहीं करते, हम तो बस दो जून की रोटी के लिए मेहनत व ईमानदारी से काम कर रहे हैं. उक्त बातें बुधवार की दोपहर सड़क किनारे लगे एक टेकर पर बोरा लादने के लिए पीठ पर अनाज से भरे बोरे का बोझ लिए खड़े एक कामगार मजदूर ने कही.

गौरतलब है कि मंगलवार की दोपहर हुई करीब एक घंटे तक मॉनसून की पहली बारिश के बाद आमजन सहित पशु पक्षी भी
राहत की सांस लिये, लेकिन बारिश के अगले ही रोज बुधवार को भगवान भास्कर ने सुबह के आठ बजते ही कड़े तेवर दिखाने लगे. इससे उमस भरी गरमी से पूरे दिन आम जनजीवन प्रभावित रहा.

कामगार भी हो रहे परेशान

धूप के तल्खी व उमस भरी गरमी का असर मेहनत करके पेट की आग बुझाने वाले कामगार मजदूरों पर कुछ भी नहीं पड़ा. हालांकि धूप के चलते आम परेशानियां तो हैं ही.

ऐसे दर्जनों कामगार पसीने से तर-बतर होकर कड़ी धूप में भी पीठ पर बोरा लाद कर वाहनों पर लोडिंग करते देखे गये कामगार गोरखनाथ, रामप्रसाद, ओम प्रकाश व कामेश्वर सहित कइयों ने बताया कि गरमी में धूप व बारिश के मौसम में पानी से भींगने से बचेंगे, तो साहब खायेंगे क्या. पीठ पर बोरे का बोझ लिए पोलदार बंशी ने बताया कि घर के 10 सदस्यों का भरण पोषण की जिम्मेदारी मेरे ही सिर पर है.

इसलिए मौसम चाहे जैसा भी रहे, हम मजदूरों को दो जून की रोटी के लिए हर हाल में काम तो करना ही पड़ता है. उसने बताया कि परिवार का भरण-पोषण व बच्चों की पढ़ाई के खातिर बोरे की ढ़ुलाई व लदनी करके सौ से डेढ़ सौ रुपये की कमाई हो जाती है. इससे परिवार का गुजारा होता है.

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