दस हजार एकड़ भूमि में लगी फसलों को बरबाद कर रहे वन्य जीव
सरकार व प्रशासन नहीं कर रहा कार्रवाई
जहानाबाद : 980-90 के दशक में क्रांति भूमि के नाम से कुख्यात जहानाबाद जिले के सदर प्रखंड के उत्तर पश्चिम क्षेत्र को लाल इलाका के नाम से जाना जाता था. शहर से महज सात-आठ किलोमीटर की दूरी पर बसे गांवों में हिंसा-प्रतिहिंसा की धधकती आग से चारों ओर अशांति मची हुई थी.
अमन-चैन गायब था. समय बदली, लोगों की सोंच में बदलाव हुआ. भूले-भटके लोग हिंसा का रास्ता त्याग कर समाज की मुख्य धारा में शामिल हुए. सरकार की महत्वाकांक्षी योजनायें नक्सल प्रभावित इलाके में धरातल पर उतारी गयी और फिर अमन-चैन की बहाली हुई. परस्पर विरोधी नकसली संगठनों की धार जब कुंद हुई तो कथित लाल इलाके में किसान मजदूर एकताबद्ध होकर खेती कार्य में तेजी लायी. खेतों में जहां बारूद की गंध फैली रहती थी वहां फसलों की रौनक से किसान खुश थे .लेकिन उनके सामने नीलगायों के रूप में एक बड़ी मुसीबत उभरी हुई है. नीलगायों के आतंक से वे आजीज हैं.
हिंसा-प्रतिहिंसा की त्रासदी से उबरने वाले किसान अपनी फसलों को चौपट होते देख चिन्तित हैं. उनके खिले चेहरे फिर से उदास होने लगे हैं और इसके लिए जिम्मेवार है करीब 500 की संख्या में उत्पात मचा रहे नीलगायों का झुंड. सदर प्रखंड के सिकरिया, भेवड़, भिठीया, सुकुलचक, मुठेर, मुसेपुर, खरौज, मिल्की, विष्टौल और इसमाइलपुर सहित अन्य गांवों के किसानों की खेत में लगी फसल को नीलगायों के द्वारा नष्ट किया जा रहा है. चार-पांच साल पूर्व जब दो तीन की संख्या में नीलगायें उक्त ग्रामीण इलाके में आयी थी तो लोगों के लिए मुसीबत नहीं थी. लोगों ने इसे गंभीरता से भी नहीं लिया था.
लेकिन धीरे-धीरे उसकी संख्या आज तकरीबन 500 की हो गयी है जो किसानों के लिए अभिशाप साबित हो रहा है. उक्त गांवों के करीब दस हजार एकड़ भूमि में लगी खरीफ और रबी फसल नीलगायों के द्वारा नष्ट की जा रही है. किसान बताते हैं कि प्रतिवर्ष करीब एक करोड़ की फसल नीलगायों के झुंड के द्वारा चट कर ली जा रही है. फिलहाल मसूर, चना, खेसारी, सरसों एवं अन्य दलहन तेलहन की फसल नष्ट होने की उन्हें चिंता सता रही है.
गांव की बाड़ियों में भी तबाही :सिकरिया गांव के निवासी किसान रामसिहासन सिंह, शिवकुमार सिंह, संतोष कुमार सिंह सहित अन्य किसान बतातें हैं कि दिन में खेत बधार में लगी फसल चट करने के बाद रात में नीलगायों का झुंड गांव की गलियों तक पहुंच जाते हैं. जिन किसानों के घर की बाड़ियों में सब्जी व फूल लगे होते हैं उसे बरबाद कर देते हैं. समूह बनाकर जब खदेड़ा जाता है तो नीलगायें बधार की ओर भाग जाते हैं. ग्रामीण यह भी बतातें हैं कि खेतों में लगी फसल इस कदर बरबाद कर दी जाती है कि उसे काटकर खलिहान में लाना संभव नहीं होता. जिस खेत में बसेरा बनाता है वहां लगी फसल चौपट हो जाता है. दिनभर ग्रामीण अपने खेतों में लगी फसल को रौंदते हुए देखते हैं लाठी डंडे के साथ समूह में जाकर उसे भगाते हैं परन्तु एक गांव से दूसरे गांव में जाकर नीलगायों के द्वारा तवाही मचायी जा रही है.
नहीं हो रही है कोई कार्रवाई:किसानों में इस बात को लेकर चिंता है कि नीलगायों को भगाने या पकड़ने के लिए सरकार एवं प्रशासन के द्वारा कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. वन विभाग एवं प्रशासन के अधिकारियों के अलावा मुख्यमंत्री तक ग्रामीण नीलगायों से हो रही तबाही की अपनी फरियाद सुना चुके हैं लेकिन नतीजा सिफर रहा. किसानों का कहना है कि वन विभाग से जब कार्रवाई करने के लिए अनुरोध किया गया तो उन्होंने यह कहकर पल्ला झाड़ दिया कि उनके पास बड़ा जाल तक नहीं है. जिसके माध्यम से नीलगायों को पकड़ा जा सके. अब तो नीलगायों की संख्या इतनी हो गयी है कि उसे पकड़ने या भगाने में काफी कठिनाई होगी. ऐसी हालत में किसान बेहद चिन्तित हैं.