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दारू बंदी सकारात्मक पहल, पर अवैध शराब बड़ी चुनौती

दारू बंदी सकारात्मक पहल, पर अवैध शराब बड़ी चुनौती सूबे की सरकार ने अगले साल पहली अप्रैल से शराबबंदी की घोषणा की है. अब देहातों में न दारू के ठेके होंगे, न शहरों के गली-नुक्कड़ों पर शराबियों की महफिल सजेगी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नशे की लत में जकड़े गरीब-गुरबा की जिंदगी को व्यवस्थित करने […]

दारू बंदी सकारात्मक पहल, पर अवैध शराब बड़ी चुनौती सूबे की सरकार ने अगले साल पहली अप्रैल से शराबबंदी की घोषणा की है. अब देहातों में न दारू के ठेके होंगे, न शहरों के गली-नुक्कड़ों पर शराबियों की महफिल सजेगी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नशे की लत में जकड़े गरीब-गुरबा की जिंदगी को व्यवस्थित करने का बीड़ा उठाते हुए यह कठिन फैसला लिया है. भले ही इससे राज्य की अर्थव्यवस्था को चार हजार करोड़ रुपये सालाना की चपत लगेगी. लेकिन मयखानों पर नकेल कसने से पियक्कड़ों की सेहत भी सुधरेगी. स्वास्थ्य मद में अफरात खर्च के बाद भी नहीं दिख रहा सुधार अब जमीनी हकीकत के रूप में परिलक्षित होने लगेगा. बीमारों की संख्या घटेगी. शराब पीने के बाद जिस तरह के छोटे-मोटे अपराध प्राय: होते हैं, उन पर भी रोक लगाने में शासन को मदद मिलेगी. रोज की मारा-मारी, छिनतइ, राहजनी, लूट, डकैती, चोरी-चकारी भी कुछ हद तक रूकेंगे. शराब पीकर गाड़ी चलाने की बुरी पंरपरा इन दिनों चल पड़ी है. बाइक से लेकर बड़े-बड़े ट्रक, हाइवा, यात्री वाहन भी चालक बेखौफ होकर सड़कों पर सरपट दौड़ा रहे हैं. नशे की लत के कारण वे बहुत लोगों की जान को खतरे में डालते हैं. रोजाना सड़क दुर्घटनाओं में पांच से दस जिंदगियां असमय काल-कल्वित होते हैं. शराब पर रोक लगाने से हादसों में मरनेवालों की संख्या घटेगी. शराबी पति-बेटे व परिजनों के चक्कर में कई महिलाओं का घर-बार तबाह हो गया. सो उन्होंने सीएम को चुनाव से पहले ही शराबबंदी पर अपना फरमान सुना दिया. लगे हाथ नीतीश कुमार ने भी उनकी सुर में सुर मिलाते हुए अगली बार सरकार में आने पर दारू पर रोक लगाने का वादा किया. अब जब नयी सरकार बन गयी, तो महिला सशक्तीकरण को और प्रभावी बनाते हुए मुख्यमंत्री ने महिलाओं के हक-हुकूक को बड़ा अाधार दिया है. हालांकि, कमजोर तबके के खून में जिस तरीके से अवैध शराब पेबस्त है, उससे पार पाना शासन-प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती होगी. गांव के गली-कूचे, झलास, नदी तट, सुदूर खेत-बागान में जिस तरीके से अवैध शराब बनाने-बेचने व पीने-पिलाने का व्यवसाय चलता है. वह हमारे राज्य की सामाजिक बुराई से इतर बड़े स्तर पर प्रशासनिक लापरवाही को भी उजागर करता है. थाना व ओपी आदि से सांठ-गांठ कर अवैध दारू का धंधा समाज की बड़ी सच्चाई है. जहरीली शराब से गयीं बहुधा जानें इसका उदाहरण है. माताओं, बहनों, बेटी व बहू की आवाज को और बुलंद करने के लिए शराबबंदी को निश्चित तौर पर सकारात्मक पहल के रूप में देखा जा रहा है. पर शासन-प्रशासन को अपने तंत्र मजबूत कर अवैध शराब पर भी कड़ाई से नकेल कसनी होगी.

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