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लापरवाही के कारण आठ वर्षों में मात्र दो लोगों को ही मिला योजना का लाभ

कर्मियों की मानें, तो प्रत्येक वर्ष सभी प्रखंडों में इस योजना का लाभ योग्य लाभुकों तक पहुंचाने के लिए फॉर्म तो भेजा जाता है, लेकिन बहुत ही कम संख्या में आवेदकों द्वारा फॉर्म भरकर वापस सामाजिक सुरक्षा कोषांग में जमा कराया जाता है. जमुई : प्रशासनिक लापरवाही और समुचित प्रचार-प्रसार के अभाव में मुख्यमंत्री नि:शक्त […]

कर्मियों की मानें, तो प्रत्येक वर्ष सभी प्रखंडों में इस योजना का लाभ योग्य लाभुकों तक पहुंचाने के लिए फॉर्म तो भेजा जाता है, लेकिन बहुत ही कम संख्या में आवेदकों द्वारा फॉर्म भरकर वापस सामाजिक सुरक्षा कोषांग में जमा कराया जाता है.

जमुई : प्रशासनिक लापरवाही और समुचित प्रचार-प्रसार के अभाव में मुख्यमंत्री नि:शक्त स्वरोजगार ऋण योजना कागजों की शोभा बनकर रह गयी है. सबसे बड़े आश्चर्य की बात तो यह है कि इस योजना की शुरुआत वर्ष 2010 में हुई थी और योजना के प्रारंभ होने के आठ साल बीत जाने के बाद भी अभी तक मात्र दो लोगों को ही इस योजना का लाभ मिल पाया है. योजना की इतनी मंथर गति ही इसकी खस्ताहाल स्थिति को बयां करने के लिए काफी है. कर्मियों की मानें तो प्रत्येक वर्ष सभी प्रखंड में इस योजना का लाभ योग्य लाभुकों तक पहुंचाने के लिए फॉर्म तो भेजा जाता है. लेकिन बहुत ही कम संख्या में आवेदकों द्वारा फॉर्म भरकर वापस सामाजिक सुरक्षा कोषांग में जमा कराया जाता है.
योजना के तहत लघु उद्योग, विकलांग उद्यमियों को सहायता, कृषि कार्य, विकलांग व्यक्तियों के लिए आवश्यक संसाधन के निर्माण और कारीगरी तथा उद्यम विकास के लिए ऋण दिया जाता है. इस योजना के तहत अधिकतम एक लाख पचास हजार रुपया ऋण के तौर पर दिया जाता है. कर्मियों की मानें तो लोगों द्वारा साठ से सत्तर हजार रुपया के आस पास का ही ऋण हेतु आवेदन दिया जाता है.
कहते हैं सहायक निदेशक
इस बाबत पूछे जाने पर सामाजिक सुरक्षा कोषांग के सहायक निदेशक संतोष कुमार ने बताया कि मुख्यमंत्री नि:शक्त स्वरोजगार ऋण योजना के तहत यहां से सारा कागजी कार्रवाई पूरी करके आवेदन भेज दिया जाता है और इसके प्रचार प्रसार के लिए भी अधिक से अधिक प्रयास किया जा रहा है. इस वर्ष लाभुकों की संख्या में बढ़ोतरी होने की संभावना है.
कैसे मिलता है इस योजना के तहत ऋण
मुख्यमंत्री नि:शक्त स्वरोजगार ऋण योजना के तहत आवेदकों को सीधे आवेदन जिला स्तर पर सामाजिक सुरक्षा कोषांग में जमा कराना पड़ता है. इस योजना के तहत ऋण लेने वाले लोगों को राज्य का स्थायी निवासी और 40 प्रतिशत से अधिक विकलांग होने का प्रमाण पत्र देना पड़ता है. इसके अलावा आवेदक की आयु 18 से 60 वर्ष के बीच होना चाहिए और आवेदक जिस जिले में आवेदन कर रहा जिले का स्थायी निवासी होना चाहिए. लाभार्थी के पास अगर किसी मान्यता प्राप्त संस्थान का डिग्री, डिप्लोमा है तो उसे ऋण में प्राथमिकता प्रदान किया जाता है. ऋण लेने के लिए एलआइसी का बांड पत्र जमीन का कागजात या कोई सरकारी जमानतदार देना पड़ता है. आवेदकों द्वारा प्राप्त आवेदन को सीधे जिला से जांच करके बिहार राज्य पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम को भेज दिया जाता है. लेकिन जरूरी कागजात नहीं रहने के कारण निगम द्वारा उन आवेदनों को रद्द कर दिया जाता है. कर्मियों की माने तो रिंकी प्रक्रिया में कागजातों की बहुत अधिक पेचीदगी होने के कारण है लाभुकों को इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है. जिसके कारण लाभुकों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.

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