ग्रामीण क्षेत्र में ही कुछ हद तक बची हैै तिलासंक्रांति में लाय बनाने की परंपरा
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अब नहीं फैलती है लाय बनने के दौरान गुड़ से निकलने वाली सोंधी खुशबू
ग्रामीण क्षेत्र में ही कुछ हद तक बची हैै तिलासंक्रांति में लाय बनाने की परंपरा आने वाली पीढ़ी को नसीब नहीं होगा घर में बना लाय सोनो : एक समय था जब नये वर्ष के आगमन के साथ ही घरों में मुढ़ी चूड़ा की व्यवस्था में घरवाले लग जाते थे. हवा में तैरती लाय बनाने […]
आने वाली पीढ़ी को नसीब नहीं होगा घर में बना लाय
सोनो : एक समय था जब नये वर्ष के आगमन के साथ ही घरों में मुढ़ी चूड़ा की व्यवस्था में घरवाले लग जाते थे. हवा में तैरती लाय बनाने की सोंधी खुशबू से ही लगने लगता था कि तिलासंक्रांति अब नजदीक है.
दरअसल तिलासंक्रांति के एक सप्ताह पूर्व से ही लगभग सभी घरों में मुढ़ी, चूड़ा व तिल वगैरह के लाय बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती थी. चूंकि लाय बनाने के लिए ज्यादातर गुड़ का इस्तेमाल होता है लिहाजा आग पर पकाये जाने वाले गुड़ की सोंधी खुशबू हवा में तैरते रहती थी. लेकिन अब यह सोंधी खुशबू महसूस नहीं होती है. कुछ हद तक ग्रामीण क्षेत्र में अभी भी लाय बनाने की पुरानी प्रथा का निर्वहन हो रहा है परंतु इसमें अब उस पुराने वाले उत्साह की कमी है. गांव में भी कम ही घरों में लाय बनाया जा रहा है. अधिकतर लोग तिलकुट की ओर मुड़ने लगे हैं. कहा जा सकता है कि लाय की जगह तिलकुट अपना स्थान बना लिया है
लेकिन उस सोंधी लाय का अपना अलग ही जायका व फ्लेवर है.
नये जमाने की महिलाएं हैं उदासीन : तिलासंक्रांति में लाय बनाने जैसे पुरानी रेसिपी व परंपरा को लेकर नये जमाने की महिलाएं उदासीन है. वे अपनी मां व दादी से लाय बनाने की विधि या तो सीखी ही नहीं और अगर सीखी भी तो वे आगे की पीढ़ी को ऐसी विधि देने में उत्साहित नहीं है. परंतु गांव की बुजुर्ग महिलाएं त्योहार को लेकर किसी भी परंपरा को छोड़ना नहीं चाहती है. लकराहा निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक कपिलदेव सिंह की पत्नी तिलासंक्रांति के मौके पर अपने घर चावल व चूड़ा भुनने में मशगूल दिखी.भुने हुए चवल व चूड़ा के अलावे तिल व मुढ़ी से गुड़ के द्वारा लाय बना रही थी. अपने आधुनिक घर की आंगन में पौराणिक प्रथा को निभाते हुए लाय बनाने के दौरान वे बताती है कि जब तक वह जीवित हैं अपने घर के बच्चों के लिए सोंधी लाय बनाती रहेंगी.
उनका मानना है कि घर में बनाये लाय को बच्चे बड़े चाव से खाते हैं और यह शुद्ध तरीके से बना होता है. लाय बनाने के लिए बाजार में गुड़ व अन्य सामग्री की खरीदारी कर रही डोकली गांव की अधेड़ पार्वती देवी बताती हैं कि उनकी पोतहू लाय बनाने को झंझट वाला काम मानती है और बाजार में बिकने वाले लाय ले आने की बात कहती है परंतु घर में बने लाय का स्वाद भला बाजार वाले में कहां आयेगा. वो बताती है कि कुछ वर्षों बाद गांव में भी महिलाएं तिलासंक्रांति पर लाय व चूड़ा-मुढ़ी नहीं बनाएगी.
विलुप्त हो जायेंगी घर में तिलासंक्रांति की ये तैयारियां: वह दिन दूर नहीं है जब तिलासंक्रांति को लेकर घरों में बनाये जाने वाले तरह तरह के लाय व चूडा-मुढ़ी बनाने की पद्धति विलुप्त हो जायेगी. तिलासंक्रांति से पूर्व हवा में फैलने वाली सोंधी खुशबू भी हमशे दूर चली जायेगी और एक समय ऐसा भी आयेगा जब घरों में बनने वाला सोंधी लाय इतिहास बनकर रह जायेगा. जरूरी है नये जमाने की औरतें अपने घर की बुजुर्ग महिला से तरह तरह के लाय बनाने की विधि को सीखकर तिलासंक्रांति में घरों में लाय बनाएं जिसे खाकर बच्चे एक आत्मीय आनंद का अनुभव करेंगे.
अब घरों में नहीं बनता है चूड़ा-मूढ़ी
लाय की बात तो छोड़ दीजिए स्थिति यह है कि गांव के लोग भी अब चूड़ा व मुढ़ी जैसे तिलासंक्रांति का स्पेशल सामग्री अपने घर में न बनाकर बाजार पर आश्रित होने लगे हैं. पहले लगभग सभी घरों में मुढ़ी के लिए खास तौर पर धान को उबाल व सुखाकर उससे निकले चावल को घर मे भूनकर मुढ़ी तैयार की जाती थी लेकिन वर्तमान में अब तैयार व पैकेटबंद मुढ़ी भी बाजार से खरीदा जाने लगा है. गांव के कुछ घरों को छोड़ दें तो अब तिलासंक्रांति में भी कहां दिखती है घरों में चावल भूनती महिलाएं.
यही हाल चूड़ा का भी है. छोटे शहरों के लोग भी अब चूड़ा व मुढ़ी को दुकान से खरीद लेते हैं जबकि गांव के लोग बाजार में धान से सीधे मुढ़ी व चूड़ा की अदला बदली कर लेते हैं. बात अगर दो तीन दशक पूर्व की करें तो गांव में घरों में ढेंकी हुआ करता था जिससे घर की महिलाएं चूड़ा भी बना लेती थी. घर में ही तैयार विशेष चावल को महिलाएं भूनकर स्वादिष्ट मुढ़ी बनाती थी. लेकिन अब तो यह सब गुजरे समय की बात होने लगी है. बाजारू मुढ़ी व चूड़ा ने घरों से भुनने के कार्य में आने वाले मिट्टी से बने कड़ाही नुमा बर्तन खपरी व बांस की छड़ी से बने छरकी कबके विलुप्त हो गये हैं. कुछ घरों में इस परंपरा की झलक मिलती भी है तो वृद्ध या अधेड़ महिला के परिवार में होने की वजह से.
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