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सब्जी की खेती ने बदल दी खाल गांव की तकदीर

सब्जी की खेती ने बदल दी खाल गांव की तकदीर 90 प्रतिशत किसान करते हैं सब्जी की खेतीसब्जी उत्पादन के क्षेत्र में बनाया जिले में स्थानकुछ लोग विपरीत परिस्थितियों में हार मान लेते हैं. आज के दौर में उच्च शिक्षा ग्रहण कर लेने के बाद भी जब नौकरी नहीं मिलती है, तो लोग हतोत्साहित हो […]

सब्जी की खेती ने बदल दी खाल गांव की तकदीर 90 प्रतिशत किसान करते हैं सब्जी की खेतीसब्जी उत्पादन के क्षेत्र में बनाया जिले में स्थानकुछ लोग विपरीत परिस्थितियों में हार मान लेते हैं. आज के दौर में उच्च शिक्षा ग्रहण कर लेने के बाद भी जब नौकरी नहीं मिलती है, तो लोग हतोत्साहित हो जाते हैं. इस कदर टूट जाते हैं कि फिर कुछ करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. लेकिन, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो कभी जिंदगी की जंग में पीछे नहीं हटते. किसी भी क्षेत्र में अपने हुनर का इस्तेमाल करके बुलंद हौसले के साथ अपनी तकदीर संवार लेते हैं और समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बन जाते हैं.फोटो – 4, 5 संवाददाता, पंचदेवरीजिले के सबसे पिछड़े प्रखंड पंचदेवरी में एक ऐसा गांव है, जहां के किसानों ने यह साबित कर दिया है कि क्षेत्र चाहे कोई भी हो यदि लगन और मेहनत से काम किया जाये, तो जिंदगी के हर मुकाम को हासिल किया जा सकता है. यह गांव प्रखंड के पश्चिमी छोर पर स्थित खालगांव है. इस गांव के 90 प्रतिशत किसान सब्जी की खेती करते हैं. यहां आलू, गोभी, मटर, टमाटर, प्याज, धनिया, मिर्च, नेनुआ आदि सभी प्रकार की सब्जी उत्पादन की दृष्टि से इस गांव ने जिले में अपना स्थान बना लिया है. पंचदेवरी, कटेया, भोरे, विजयीपुर सहित कई प्रखंडों के व्यवसायी प्रतिदिन यहां से सब्जी खरीद कर ले जाते हैं. इस गांव का छोटा किसान भी सब्जी के कारोबार से प्रतिवर्ष लाखों रुपये कमाता है. इस गांव के रवींद्र चौधरी, राम अवध सिंह, दिलीप सिंह, श्रीकांत सिंह, भृगुनाथ चौधरी, चंद्रिका सिंह, रमेश साह, प्रेम सागर सिंह, गया सिंह आदि किसान सब्जी के बड़े उत्पादक के रूप में जाने जाते हैं. इनकी सब्जी की खेती की चर्चा इन दिनों पूरे इलाके में हो रही है. खेती की बदौलत बनी ऊंची इमारतेंएक समय था जब इस गांव में गिने-चुने पक्का मकान थे. यह प्रखंड के एक पिछड़े गांव के रूप में जाना जाता था. लेकिन, यहां के किसानों की मेहनत ने रंग लाया और गांव का नजारा बदल गया. आज इस गांव में झोंपड़ियों की जगह बहुमंजिली इमारतें दिखायी देती हैं. गांव पूरी तरह से शहरनुमा हो चुका है. हर घर में टेलीविजन और कंप्यूटर देखने को मिलते हैं. सुबह से शाम तक बूढ़े-जवान सभी अपने कमों में व्यस्त दिखते हैं. आज खेती ने पूरे गांव की तसवीर ही बदल डाली है.बच्चों को शिक्षित करने की लगी है होड़खालगांव जो कभी अशिक्षा का पर्याय बना हुआ था अब शिक्षा का पर्याय बनता जा रहा है. यहां के किसान खेती की बदौलत न केवल आर्थिक विकास की बल्कि शैक्षणिक विकास में भी पीछे नहीं है. किसानों में अपने बेटे-बेटियों को शिक्षित करने की होड़ लगी है. श्रीकांत सिंह ने जहां अपने बेटा हेमंत कुमार को प्रोफेसर बनाया है, वही रवींद्र चौधरी का बेटा आदित्य पटना में आइआइटी की तैयारी कर रहा है. गया सिंह और रामअवध सिंह अपने बेटे-बेटियों को शहरों में उच्च शिक्षा दिला रहे हैं, तो चंद्रिका सिंह का बेटा रीतेश पटना में प्रतियोगी तैयारी कर रहा है. इस तरह पूरे गांव में शिक्षा की होड़ लगी हुई है.इलाके के किसानों के लिए बने प्रेरणास्रोतखालगांव के किसान क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं. इनके आर्थिक और शैक्षणिक विकास ने आसपास के गांवों के किसानों के सोच भी बदल डाले हैं. ये किसान की मेहनत व लगन से अपनी तकदीर संवारने में लगे हुए हैं. किसनों के इस जज्बे को देख इलाके के लोग भी इस गांव की मिसाल देने लगे हैं.

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