जातीय गणित में गुम हुआ आंदोलन का मुद्दा चुनावी शोर में दफन हो गया बरौली का सपनाअनुमंडल बनाने के लिए शुरू हुआ था आंदोलनविधानसभा चुनाव में इस बार अनुमंडल की चर्चा तक नहींनुक्कड़ चर्चा/ बरौलीशुक्रवार की शाम छह बजनेवाले थे. चारों तरफ अंधेरे को स्ट्रीट लाइट की रोशनी चीर रही थी. बरौली बाजार के परशुराम की चाय दुकान पर बैठे कुछ बुजुर्ग विधानसभा चुनाव पर चर्चा कर रहे थे. महंत चौधरी ने शुरू किया कि इस चुनाव में भी जातीय गणित शुरू हो गया है. किस जात का वोट किसको मिल रहा है इसी की चर्चा हो रही है. बगल में बैठे इकबाल भाई भी इस चुनावी चर्चा में शामिल हो जाते हैं. वह अभी कुछ कहते कि दीनानाथ सहनी कहते हैं कि इस जातीय गणित में तो आंदोलन का मुद्दा ही समाप्त हो गया है. चुनाव के इस शोर में बरौली का सपना दफन हो गया है. इस बीच परशुराम अपने हाथ से चाय बना कर इनके बीच बांटते हैं. अवधेश सिंह कहते हैं कि बरौली को अनुमंडल बनाने के लिए जयनाथ यादव और लोजपा के जिलाध्यक्ष विजय प्रताप सिंह ने वर्ष 1990 में आंदोलल की शुरुआत की थी. हर चुनाव में इसे अनुमंडल बनाने के लिए वादा हुआ. यहां तक की बैकुंठपुर के विधायक मंजीत सिंह ने अनुमंडल बनाने का प्रयास किया. यह प्रयास ही बन कर रह गया. सामाजिक कार्यकर्ता नरेश परमार्थी ने अनुमंडल बनाने के लिए वर्ष 2014 में प्रत्येक गांव, बाजार में नुक्कड़ सभा कर लोगों को जागरूक करने के लिए आंदोलन कर शुरुआत की. लोगों को लगा कि यह आंदोलन अंतिम रूप लेगा. इस बीच नरेश परमार्थी की 19 मई, 15 को मौत हो गयी. इनकी मौत के बाद यह पहला चुनाव है, जिसमें अनुमंडल का मुद्दा गायब हो गया है. अब सिर्फ इस चुनाव को जातीय समीकरण बना कर प्रबुद्ध लोग से लेकर राजनीतिक दल भी देख रहा है. आगे क्या होगा, इसकी चिंता सबके चेहरे पर दिख रही थी. बुजुर्गों को इस महत्वपूर्ण मुद्दे के गुम होने का मलाल भी था. इस चुनाव में पुराने चेहरे पर ही राजनीतिक दलों ने अपना दावं लगा रखा है.
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जातीय गणित में गुम हुआ आंदोलन का मुद्दा
जातीय गणित में गुम हुआ आंदोलन का मुद्दा चुनावी शोर में दफन हो गया बरौली का सपनाअनुमंडल बनाने के लिए शुरू हुआ था आंदोलनविधानसभा चुनाव में इस बार अनुमंडल की चर्चा तक नहींनुक्कड़ चर्चा/ बरौलीशुक्रवार की शाम छह बजनेवाले थे. चारों तरफ अंधेरे को स्ट्रीट लाइट की रोशनी चीर रही थी. बरौली बाजार के परशुराम […]
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