किसानों के दुखते रग पर जब सरकार ने फसल मुआवजे की राशि का मरहम लगाया, तो ऐसा लगा कि किसानों का दर्द कुछ हद तक जरूर कम होगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ,
प्रखंड कार्यलय में बैठे बाबू न तो किसानों की सुन रहे हैं और न ही कोई माकूल जवाब तक दिया जा रहा है. ऐसे में परेशान किसानों की मायूसी के सिवाय कुछ भी नहीं लग रहा. एक तरफ जहां भोरे में 800 किसान अभी भी बैंकों का चक्कर लगा रहे हैं, तो वहीं भोरे से दो कदम आगे निकल कर फुलवरिया में तो किसानों को क्षतिपूर्ति की राशि की जानकारी की जगह फटकार मिल रही
है.ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर सरकार किसानों की हिमायती है, तो कार्यालय में बैठे बाबू किसान विरोधी. बता दें कि ओलावृष्टि और भारी बारिश के कारण गेहूं की फसल को काफी नुकसान पहुंचा था, जिसे लेकर प्रति हेक्टेयर 13.500 हजार रुपये अनुदान देने की बात कही गयी थी. इसके लिए किसानों से आवेदन भी लिये गये थे.
क्षतिपूर्ति की राशि की आस में बैठे किसानों ने कर्ज लेकर खरीफ फसलों की खेती की. उम्मीद थी कि राशि मिलेगी. लेकिन, राशि खाते में नहीं पहुंची. और-तो-और खरीफ महोत्सव के दौरान अनुदान पर दिये गये धान के बीजों के अनुदान की राशि भी अब तक नहीं भेजी गयी. आरटीजीएस प्रणाली से भेजे जानेवाली राशि पर अब लोगों का भरोसा नहीं रह गया है. यहां तक की भोरे, फुलवरिया प्रशासन को डीएम के आदेश से भी कोई मतलब नहीं. ऐसे में परेशान किसान आखिर जायें तो जायें कहां?