गोपालगंज : ली करेंसी से निबटने के लिए रिजर्व बैंक ने वर्ष 2005 से पहले के 500 व 1000 रु पये के नोट बाहर करने का फैसला लिया है, लेकिन इसे बैंक ही पलीता लगा रही है. वाकई इस व्यवस्था को कारगर बनाना है, तो बैंकों से पहल जरूरी है. ऐसा न हुआ तो फिर बार-बार तारीख बढ़ाने के सिवाय कुछ भी हाथ नहीं लगेगा. बैंकों तक ऐसे नोट पहुंचने के बाद फिर से ग्राहकों की जेब में आ रहे हैं.
इसके पीछे करेंसी चेस्ट में नोटों की छंटाई कराने में अफसरों व कर्मचारियों की बेपरवाही है. बैंक इंप्लाइज यूनियन के प्रवक्ता सुशील श्रीवास्तव ने बताया कि इन नोटों को बदलने के लिए अलग से व्यवस्था की गयी है. लोग भी ऐसे नोट मिलने पर सावधानी रखें.
कुछ यूं बढ़ायी गयी तारीख : नोट बदलने के लिए रिजर्व बैंक की प्रक्रिया 23 जनवरी, 2014 को शुरू हुई थी. मार्च 2014 में फरमान जारी किया गया. इसके बाद पहले जून में तिथि बढ़ी फिर 31 दिसंबर, 2014 से पहले इसे आगे खिसका दिया गया. अब 30 जून की आखिरी तिथि को 31 दिसंबर, 2015 तक बढ़ा दी गयी है.
अब फिर कसे गये पेच : रिजर्व बैंक ने 25 जून को नोट बदलने की समयावधि 31 दिसंबर, 2015 तक करने के साथ ही बैंकों के प्रबंधन को भी सख्त हिदायत दी है. आरबीआइ के महाप्रबंधक ने निर्देश में कहा है कि बैंक शाखाओं पर नोट बदलने की सहूलियत तैयार करें और कर्मचारियों को ग्राहकों के साथ बेहतर रवैया अख्तियार करने को कहें.
पंचदेवरी :प्रखंड क्षेत्र में कुल 97 आंगनबाड़ी केंद्र हैं, जिनमें 56 को आज तक भवन नसीब नहीं हुआ है. इसके कारण उसका संचालन या तो खुले आसमान के नीचे होता है या फिर किसी पेड़ के नीचे. इस व्यवस्था से आप खुद ही अंदाजा लगा सक ते हैं कि यहां नौनिहालों की पढ़ाई किस तरह होती है.
जाड़े के मौसम में कड़ाके की ठंड हो या फिर गरमी की तपिश इन सभी विषम परिस्थितियों को इन केंद्रों के मासूम बच्चे ङोलने को विवश हैं.
97 आंगनबाड़ी केंद्रों में से मात्र 44 पर ही चापाकल लगे हैं, जिनमें से चार खराब हो चुके हैं. अन्य 57 आंगनबाड़ी केंद्रों के बच्चे पानी कहां पीते हैं, इसकी परवाह विभाग को नहीं है. बाल विकास परियोजना कार्यालय की स्थिति तो और भी बदतर है. इसका संचालन गंडक विभाग के जजर्र भवन में होता है.