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बच्चों का व्यवहार बदला-सा है, तो हो सकता है डिप्रेशन का केस

इस तरह के व्यवहार को हल्के में न लेकर चिकित्सकों से करें संपर्क गया : आपका बच्चा अगर चिरचिरा हो गया है. कम बात करता है. उसकी गतिविधियां असामान्य-सी लग रही हैं, तो इसे उसका बचपना मान कर नजरअंदाज नहीं करें. आपका बच्चा डिप्रेशन का शिकार हो सकता है. मनोरोग विशेषज्ञ सभी को इसको लेकर […]

इस तरह के व्यवहार को हल्के में न लेकर चिकित्सकों से करें संपर्क
गया : आपका बच्चा अगर चिरचिरा हो गया है. कम बात करता है. उसकी गतिविधियां असामान्य-सी लग रही हैं, तो इसे उसका बचपना मान कर नजरअंदाज नहीं करें. आपका बच्चा डिप्रेशन का शिकार हो सकता है. मनोरोग विशेषज्ञ सभी को इसको लेकर सचेत कर रहे हैं.
मनोविज्ञान में हुए शोध के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि अब सिर्फ व्यस्क ही नहीं, कम उम्र के बच्चे भी डिप्रेशन की चपेट में आ रहे हैं. मुश्किल यह है कि डिप्रेशन को गंभीरता से लिया नहीं जाता. इसे मन की नहीं होने पर नाराजगी या जिद की संज्ञा देकर अभिभावक नजर अंदाज कर देते हैं. यह गलती बड़ी परेशानी को न्योता है. मनोरोग चिकित्सक डाॅ अभय कुमार कहते हैं कि शहर में भी ऐसे कई मामले जरूर होंगे. कुछ ही सामने आ पाते हैं. चूंकि डिप्रेशन विषय पर कोई सर्वे नहीं हुआ और ना ही सरकारी स्तर पर इसका कोई रिकॉर्ड है, इसलिए सटीक तौर पर कोई आंकड़ा बता पाना मुश्किल है.
अभिभावक की इच्छाएं कर रहीं बच्चों को बीमार : मनोरोग विशेषज्ञों के मुताबिक अभिभावकों की इच्छाएं बच्चों में डिप्रेशन का एक प्रमुख कारण है. अभिभावक अपने बच्चों की इच्छाओं को दरकिनार कर खुद की इच्छा उन पर थोपते हैं. डाॅ अभय कुमार बताते हैं कि कक्षा तीन व चार में पढ़नेवाले बच्चे डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं. घर के लोग इस बात को नहीं समझते हैं.
डाॅ कुमार ने कहा कि अभिभावकों को यह समझना होगा कि बच्चे का बेहतर भविष्य बनाने के लिए उन पर उनकी क्षमता से अधिक का बोझ नहीं देना चाहिए. छोटी उम्र में ही उस पर अधिक दबाव बनाने से वह उम्र बढ़ने के साथ मानसिक व शारीरिक दोनों तरह से कमजोर हो जायेगा. किसी तरह नौकरी हासिल भी कर ली, तो भी वह जीवनभर खुश नहीं रह सकता.
20 से 30 वर्ष तक की युवतियों को सबसे अधिक खतरा : डाॅ अभय कुमार ने बताया कि 20 से 30 साल तक की उम्र के युवाओं में डिप्रेशन के अधिक मामले होते हैं. इनमें सबसे ज्यादा मामले इस उम्र की लड़कियों के जुड़े हुए हैं. उन्होंने बताया कि सामाजिक तानाबाना कुछ ऐसा है कि बचपन से ही लड़कियों को अपनी इच्छाओं के लिए समझौता करना होता है. बचपन से ही इसका प्रभाव उस पर पड़ने लगता है. जब वह व्यस्क होती है, तो उसकी इच्छाएं प्रबल हो जाती हैं. परिवार से सहयोग नहीं मिलने की स्थिति में वह मानसिक रूप से परेशान रहने लगती है.
भारत में सबसे अधिक मामले : भारत में 13 से 15 साल की उम्र में हर चार में एक युवा डिप्रेशन की चपेट में है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण पूर्व एशिया में 8.6 करोड़ लोग इस बीमारी की चपेट में हैं. दस दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में सर्वाधिक आत्महत्या दर भारत में ही है. ‘ दक्षिण पूर्व एशिया में किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति : कार्रवाई का सबूत’ नाम से जारी रिपोर्ट कहती है कि 2012 में भारत में 15-29 उम्र वर्ग के प्रति एक लाख व्यक्ति पर आत्महत्या दर 35.5% थी. इसी उम्र वर्ग में प्रति एक लाख लोगों पर अनुमानित आत्महत्या दर इंडोनेशिया में 3.6 से व नेपाल में 25.8% है.
अपने बच्चों की जरूर सुनें
अपने बच्चों की जरूरी सुनें. वे क्या चाहते हैं, समझे. अपनी इच्छाओं को उस पर न थोपें. उन पर केवल पढ़ाई और अच्छे रिजल्ट का दबाव नहीं बनायें. अपने बच्चों के भीतर छिपी प्रतिभा को पहचानें.
यह देखें कि उनकी रुचि किस क्षेत्र में है. उसी ओर उसे प्रेरित करें. बच्चे को घर के अंदर किताब और कंप्यूटर में उलझाने से ज्यादा बेहतर होगा कि उसे समाज में घुलने-मिलने दें. इससे उसके दिमाग का विकास होगा. बच्चे के व्यवहार में किसी प्रकार का बदलाव दिखे, तो इसे सामान्य मान कर कभी नहीं टालें. हो सकता है कि वह डिप्रेस्ड हो. मनोचिकित्सक से जरूर संपर्क करें.
डाॅ अभय कुमार, मनोचिकित्सक

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