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मकर संक्रांति में स्नान बेला की प्रधानता

मकर संक्रांति में स्नान बेला की प्रधानता15 को मनायी जायेगी मकर संक्रांति मकर संक्रांति त्याेहार में पुण्यमय स्नान बेला की प्रधानता है. पुण्यदायक स्नान का काल मकर राशि पर सूर्य प्रवेश की बेला से प्रारंभ हाेकर 20 घड़ी तक अर्थात आठ घंटे तक रहता है. 14 जनवरी काे दिन अथवा रात में कमर पर सूर्य […]

मकर संक्रांति में स्नान बेला की प्रधानता15 को मनायी जायेगी मकर संक्रांति मकर संक्रांति त्याेहार में पुण्यमय स्नान बेला की प्रधानता है. पुण्यदायक स्नान का काल मकर राशि पर सूर्य प्रवेश की बेला से प्रारंभ हाेकर 20 घड़ी तक अर्थात आठ घंटे तक रहता है. 14 जनवरी काे दिन अथवा रात में कमर पर सूर्य का संचार इस वर्ष नहीं हाे रहा है. अत: पुण्यकाल 14 जनवरी काे नहीं मिल रहा है. 15 जनवरी काे प्रात:काल 7.30 (साढ़े सात) बजे से पुण्यदायक स्नानकाल प्रारंभ हाेता है. इसी बेला से शिशिर ऋतु की शुरुआत हाेती है. वर्ष भर के छह ऋतुआें में यह एक है. संक्रांति स्नान गंगा नदी में फलप्रद है. गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम स्थल पर तीर्थराज प्रयाग में विशेष फलदायक है. गंगा व सागर के संगम स्थल पर गंगासागर तीर्थ में सर्वाधिक फलप्रद है. मकर संक्रांति महापर्व की कथा श्रीमद्भागवत महापुराण में भगवान कपिल मुनि व राजा सगर की संतान से जुड़ी है. राजा सगर द्वारा किये गये अश्वमेघ यज्ञ में घाेड़ा काे अबाध गति से आगे बढ़ने के लिए छाेड़ा गया. देवराज इंद्र ने गुप्त रूप से घाेड़े काे कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया. घाेड़े का अन्वेषण करते हुए राजा सगर के साठ हजार पुत्र कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे. यह आश्रम सागर तट पर स्थित था. सगर पुत्राें ने भ्रमवश घाेड़ा चुरानेवाला समझ कर तपस्या में लीन कपिल मुनि का तिरस्कार किया. तपस्या से विरत मुनि की आंखें खुलीं. उनकी क्राेधदृष्टि से साठ हजार सगर पुत्र भस्म हाे गये. दयावश मुनि ने वरदान दिया कि गंगाजल के स्पर्श से भस्मीभूत सगर पुत्र स्वर्ग काे प्राप्त हाेंगे. सगर के वंश में उत्पन्न राजा भगीरथ की तपस्या से गंगा का अवतरण हुआ. हिमालय पुत्राें से चल कर सागर तक आकर गंगा ने जल स्पर्श से सगर पुत्राें काे स्वर्ग दिलाया. यह घटना मकर संक्रांति काे हुई. कपिल मुनि का आश्रम भी जलमग्न हुआ. यह स्थल गंगासागर तीर्थ हुआ. यहां स्नान मेला हाेता है. यह स्नान स्वर्ग प्राप्त कराता है. आचार्य लालभूषण मिश्र याज्ञिक

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