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गया से भी गहरी जुड़ी हैं कलाम की यादें

पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम का नहीं रहना गया के लोगों के लिए भी बेहद पीड़ादायी है. गया और बोधगया की यात्रा एं कर वह यहां के लोगों के दिलों-दिमाग पर अपनी गहरी छाप छोड़ गये थे. मई, 2003 में उनकी बोधगया यात्रा के करीब 12 वर्ष बाद आज भी उन्हें लोग बात-बे-बात याद […]

पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम का नहीं रहना गया के लोगों के लिए भी बेहद पीड़ादायी है. गया और बोधगया की यात्रा एं कर वह यहां के लोगों के दिलों-दिमाग पर अपनी गहरी छाप छोड़ गये थे.
मई, 2003 में उनकी बोधगया यात्रा के करीब 12 वर्ष बाद आज भी उन्हें लोग बात-बे-बात याद करते रहते हैं. फरवरी, 2010 में भी एक बार उन्हें गया आने का अवसर मिला. गया कॉलेज, गया में आयोजित थर्ड बिहार साइंस कॉन्फ्रेंस में भाग लेने आये थे. तब भी उन्हें जितने लोग मिले, सब उनके आचार-विचार, व्यवहार, सादगी और सज्जनता के मुरीद हो गये.
गया कॉलेज, गया में 11 फरवरी, 2010 को देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का आना हुआ था. उन्होंने यहां आयोजित थर्ड बिहार साइंस कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन सत्र में भाग लिया था.
उनके उस दौरे को याद करते हुए गया कॉलेज, गया के तत्कालीन प्राचार्य, डॉ श्रीकांत शर्मा, जो अब पटना स्थित टीपीएस कॉलेज के प्राचार्य हैं, ने डॉ कलाम के निधन पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि वह राष्ट्रपति पूर्व थे, पर एक व्यक्ति के रूप में अपूर्व थे. डॉ शर्मा के मुताबिक, डॉ कलाम विरल शख्सियत के मालिक थे. ऊपरोक्त आयोजन में उनकी मौजूदगी को याद करते हुए डॉ शर्मा ने कहा, ‘जिस वक्त वह यहां (गया कॉलेज, गया) थे, वह क्षण ऐतिहासिक था. भुलाये नहीं भूल पाते. तब लगा ही नहीं कि इतने बड़े वैज्ञानिक हमारे बीच हैं.
इतने सहज-सरल कि हर व्यक्ति उन्हें अपना माने-समङो. तब लगा मानो लोग अपने घर-परिवार के किसी सदस्य से ही मिल रहे हों. मानो वे हमारे अतिथि नहीं, बल्कि अपने अभिभावक हों.’ डॉ शर्मा के मुताबिक, कार्यक्रम के मंच पर डॉ कलाम के लिए उनकी हस्ती के हिसाब से अलग दिखनेवाली एक भव्य कुरसी रखीगयी थी.
पर, जब पूर्व राष्ट्रपति पहुंचे, तो उन्होंने कुरसी बदलवा दी. उन्होंने एक सामान्य कुरसी मंगवायी और उसी पर बैठे. बहुत स्पष्ट संदेश था. वह यह कि कुरसी पर बैठने वाले की शख्सियत कुरसी के आकार-प्रकार से न तय हो सकती और न ही प्रभावित. डॉ शर्मा ने कहा कि उनके बॉडी लैंग्वेज से साफ झलक रहा था कि वह उनके सामने और आसपास के हर व्यक्ति से मिलना और उसे समझना चाहते हैं.
उनके आने के मौके पर केवल कॉलेज के शिक्षकों व छात्रों में ही नहीं, बल्कि गया के हर व्यक्ति में प्राकृतिक उत्साह का संचार हो रहा था. कोई बनावट नहीं थी, कहीं कोई औपचारिकता नहीं थी. डॉ कलाम के नहीं रहने से कितनी बड़ी क्षति हुई है, फिलहाल तो इसका आकलन ही मुश्किल लग रहा है.
भूलना मुश्किल है वो लमहा
गया कॉलेज, गया में अंगरेजी के विभागाध्यक्ष डॉ केके नारायण के लिए पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के निधन की खबर एक बड़े सदमे के साथ आयी. वह काफी देर तक समझ नहीं पाये कि इस ‘हादसे’ की प्रतिक्रिया कैसी होनी चाहिए. काफी देर बाद बातचीत में उन्होंने कहा, ‘डॉ कलाम को भूल पाना ही बड़ा मुश्किल है. हम उनके साथ गुजारे लमहे को भूल ही नहीं सकते.
मुङो तो देश के तीन-तीन राष्ट्रपतियों की मौजूदगी वाले मंच के संचालन का अवसर मिला. पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय ज्ञानी जैल सिंह, प्रतिभा देवी सिंह पाटील और डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की उपस्थिति में हुए कार्यक्रमों का संचालन किया. पर, डॉ कलाम की बात ही और थी. अपने इष्ट-मित्र या परिजन की भांति उनकी आत्मीयता और सादगी केवल याद रखने योग्य नहीं, बल्कि प्रेरक व अनुकरणीय है. हर आदमी के लिए.
डॉ कलाम हर व्यक्ति के लिए अपने आदमी थे. मुङो याद आ रहा है कि थर्ड बिहार साइंस कॉन्फ्रेंस के जिस कार्यक्रम में वह गया कॉलेज, गया आये थे, उसमें तमाम लोगों से मिल कर उन्होंने आभार जताया. मंच से विदा होने से पूर्व मुझसे भी मिले और कहा-थैंक्स नारायण, थैंक्स. उन्हें भूल पाना मुश्किल है हम सबके लिए.’
15 जून, 2012 को पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम प्रभात खबर के पटना कार्यालय में पधारे थे. अतिथि संपादक बन कर. उसी दिन दोपहर में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये प्रभात खबर के संपादकों के साथ बातचीत की.
प्रभात खबर, गया के संपादक से बातचीत करते हुए भी उन्होंने गया व बोधगया की उन्नति-प्रगति के बारे में जानना चाहा. यहां की सड़कों की हालत पर बातें कीं. धार्मिक पर्यटन के लिहाज से महत्वपूर्ण जगह होने के चलते गया और बोधगया में विदेशी नागरिकों की जरूरतों व उनके लिए जरूरी सुविधाओं पर चर्चा की.
खास था पटना से गया-बोधगया की दूरी और आने-जाने के लिए सड़क व यातायात की सुविधाओं पर उनका ध्यान होना. बातचीत में ऐसा लगा मानो एक दिन पहले ही वह पटना से गया-बोधगया आकर वापस लौटे हों. बातों में यहां की तमाम चीजों व परिस्थितियों का ऐसा जीवंत चित्रण, मानो वर्षो पुराने उनके गया-बोधगया दौरों से जुड़ी तमाम यादें कुछ उनके मानस पटल पर बिल्कुल स्पष्ट अंकित हों.

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