यहां से पानी फिल्टर कर जार, थर्मस व बोतलों में भरे जा रहे हैं. उपभोक्ताओं के घरों तक सीधे फिल्टर्ड पानी पहुंचाने का सिस्टम भी तेजी से विकसित हुआ है. इसका दायरा भी बढ़ रहा है. इससे आये दिन पेयजल, फिल्टर्ड वाटर हो या ब्रांडेड मिनरल वाटर, की मांग बढ़ रही है. फिलहाल, गया में लगभग एक लाख लीटर से भी ज्यादा फिल्टर्ड पानी की खपत हो रही है. गरमी में बोतलबंद पानी की खपत अधिक हो रही है. रोजाना बड़ी संख्या में ब्रांडेड मिनरल वाटर की बोतलें बाजारों में उतारी जा रही हैं. यस इंटरप्राइजेज के नीरज कुमार के अनुसार, फिलहाल गया में रोज 25 हजार लीटर ब्रांडेड मिनरल वाटर खप रहा है.
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गयावासियों में भी तेजी से बढ़ रहा बोतलबंद पानी का क्रेज, पी रहे 25 करोड़ का पानी
गया/बोधगया: बदलती जीवनशैली व स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का ही परिणाम है कि गया शहर के लोग भी हर साल करीब 25 करोड़ रुपये पीने के पानी पर खर्च करने लगे हैं. इसमें बोतलबंद फिल्टर्ड वाटर के अलावा ब्रांडेड कंपनियों का मिनरल वाटर शामिल है. साल-दर-साल पानी पर होनेवाले खर्च व बोतलबंद पानी पीने के […]
गया/बोधगया: बदलती जीवनशैली व स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का ही परिणाम है कि गया शहर के लोग भी हर साल करीब 25 करोड़ रुपये पीने के पानी पर खर्च करने लगे हैं. इसमें बोतलबंद फिल्टर्ड वाटर के अलावा ब्रांडेड कंपनियों का मिनरल वाटर शामिल है. साल-दर-साल पानी पर होनेवाले खर्च व बोतलबंद पानी पीने के शौकीन लोगों की संख्या बढ़ रही है. पेयजल के कारोबार से जुड़े व्यवसायियों की मानें, तो स्वास्थ्य के प्रति बढ़ी जागरूकता के कारण आनेवाले वर्षो में बोतलबंद पानी की खपत और बढ़नेवाली है.
फिलहाल, गया व बोधगया के आसपास 25 से ज्यादा आरओ प्लांट चल रहे हैं.
चकाचक है बिजनेस भी : बोतलबंद पानी का कारोबार लगातार बढ़ रहा है. करीब डेढ़ लाख रुपये का फिल्टर्ड वाटर हर रोज गया शहर के बाजार में बिक रहा है. छोटी बोतलों में आनेवाला मिनरल वाटर ज्यादा बिजनेस दे रहा है. ऐसे मिनरल वाटर का करीब पांच लाख रुपये तक का दैनिक कारोबार है. इस तरह रोज साढ़े छह से सात लाख रुपये का पानी लोग खरीद कर पी रहे हैं. मासिक आधार पर यह आंकड़ा दो करोड़ के आसपास पहुंच रहा है. मौजूदा बिजनेस ट्रेंड के आधार पर कहा जा सकता है कि हर वर्ष गया के लोग करीब 25 करोड़ रुपये पीने के पानी पर खर्च करने लगे हैं.
कैसे तैयार होता है आरओ वाटर
फूड एंड बेवरेज प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक कमलेश कुमार दिवाकर ने बताया कि बोरिंग द्वारा भूमिगत पानी को निकाल कर ओवरहेड टैंक तक पहुंचाया जाता है. इसके बाद पानी में एलम (फिटकरी) मिलाया जाता है. इससे पानी में मौजूद फ्लोकूलेंट प्रेसिपिटेट अलग हो जाता है. इस ट्रीटेड वाटर को लो प्रेशर पंप से मल्टीग्रेड सैंड फिल्टर व एक्टिवेटेड कार्बन फिल्टर से शुद्ध किया जाता है. इसके बाद एंटी स्कैलेंट मिला कर माइक्रोन बैग फिल्टर व माइक्रोन कॉटेज फिल्टर से पानी को प्रवाहित कराया जाता है. पुन: पानी को रिवर्स ओसमोसिस (आरओ) से प्रवाहित किया जाता है, जिसके बाद 60 प्रतिशत शुद्ध पानी व 40 प्रतिशत अशुद्ध मिलता है. शुद्ध पानी को बोतलों में भरा जाता है व अशुद्ध पानी को बोरिंग वाले क्षेत्र में बहा दिया जाता है, ताकि वाटर लेवल बना रहे.
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