गया: तुलसी जयंती पर पिता महेश्वर मुहल्ले के मानस मुक्ति केंद्र में कार्यक्रम हुआ. इस अवसर पर आचार्य प्रणव मिश्र ने कहा कि तुलसीदास रचित रामचरितमानस की एक -एक चौपाई महामंत्र व कल्याणकारी है. ये हमें जीने की कला सिखाती हैं. मानस में नवधा भक्ति का उल्लेख है. भगवान श्रीराम ने शबरी पर कृपा करके नवधा भक्ति का उपदेश दिया था. इसमें सत्संग को प्रथम स्थान, प्रभु की गुण-लीला को दूसरे, गुरु पद की सेवा को तीसरे व भगवत नाम के कीर्तन-गान को चौथे स्थान पर रखा गया है.
उन्होंने कहा कि गोस्वामी जी ने लिखा है ‘प्रथम भगति संतन कर संगा, दूसरी रति मम कथा प्रसंगा, गुरु पद पंकज सेवा, तीसरी भगति अमान, चौथी भगति मम गुन गन, करहिं कपट तजि गान’. उन्होंने बताया कि भगवान का नाम, रूप, गुण व लीलाओं की कथा का श्रवण व भगवान के नाम का संकीर्तन भक्ति का प्रमुख स्थान है. आचार्य मिश्र ने कहा कि भगवान का नाम भवरोगों की महौषधि है. उनके नाम मात्र से ही सभी बंधन टूट जाते हैं. भगवान के नाम का स्मरण व कीर्तन मनुष्य के लिए सदा व सभी प्रकार से कल्याण का साधन है.
खास कर कलियुग में इसकी विशेष महिमा है. उन्होंने कहा कि सतयुग में भगवान का ध्यान करने, त्रेता में बड़े-बड़े अनुष्ठान करने व द्वापर में भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करने से जो फल मिलता है, वह कलियुग में भगवान का नाम का स्मरण व कीर्तन से ही मिल जाता है.