बोधगया: गांवों में विकास की लौ जलाने के लिए जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि विवशता की आग में झुलस रहें हैं. जनप्रतिनिधि ग्रामसभा व आमसभा में उठनेवाले सवालों के जवाब भी नहीं दे पा रहे. जनप्रतिनिधियों को अब सूझ नहीं रहा कि उनके नियंत्रण में क्या है ? मनरेगा, बीआरजीएफ व वित्त आयोग के रुपयों से आधारभूत संरचना को दुरुस्त करने का काम हो या अन्य योजनाओं पर निगरानी इन्हें सबसे दूर कर दिया गया है.
जन वितरण प्रणाली हो या फिर आंगनबाड़ी केंद्र, इंदिरा आवास योजना हो या पेंशन वितरण या फिर खेती-गृहस्थी से जुड़ी योजना. त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों का इससे कोई लेना-देना नहीं.
अब तो स्कूलों के संयुक्त अकाउंट से भी मुखिया की भागीदारी खत्म हो गयी है. सिर्फ पंचायत सचिव के नाम से खोले गये बैंक अकाउंट के माध्यम से पंचायत शिक्षकों के रुपये मिल पायेंगे. जनप्रतिनिधि अब सर्वागीण विकास से दूर रहेंगे.