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बही-वसना की पूजन का है विशेष महत्व

चित्रगुप्त पूजा पर विशेष धर्मराज की सभा में सभी जीवों के शुभ-अशुभ कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त भगवान की उत्पत्ति ब्रह्माजी द्वारा समाधिस्थ की अवधि में हुआ था. प्रजापति ब्रह्मा की काया से उत्पत्ति के कारण इनकी कायस्थ संज्ञा हुई. ब्रह्मा जी के आदेशानुसार इन्होंने गौड़, माथुर, भटनागर, सेनक, अहिगण, श्रीवास्तव, अम्बष्ठ व करण […]

चित्रगुप्त पूजा पर विशेष धर्मराज की सभा में सभी जीवों के शुभ-अशुभ कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त भगवान की उत्पत्ति ब्रह्माजी द्वारा समाधिस्थ की अवधि में हुआ था. प्रजापति ब्रह्मा की काया से उत्पत्ति के कारण इनकी कायस्थ संज्ञा हुई. ब्रह्मा जी के आदेशानुसार इन्होंने गौड़, माथुर, भटनागर, सेनक, अहिगण, श्रीवास्तव, अम्बष्ठ व करण रूपी प्रजा को उत्पन्न किया और धर्मराज की सभा में शुभ-अशुभ कर्मों के निर्णय के सिंहासन पर विराजमान हुए. हाथ में कलम-दावात लिए विचित्राड़्ग चित्रगुप्त जी की ख्याति इतनी चर्चित हुई कि अत्यंत नराधम सौदास राजा को इनकी पूजा के पुण्य-बल से स्वर्ग प्राप्त हुआ. द्वापर में श्री कृष्ण ने देवराज इंद्र के गर्व को चूर करने के लिए अपनी कनिष्ठका (उंगली) पर गोवर्धन पर्वत को उठाया. इस प्रभाव से श्रीकृष्ण को गोविंद नाम पड़ा. यमुना में भाई-बहन के स्नान का विशेष महत्व है. यमुना जी अपने भाई यमराज को भोजन इसी दिन कराया था एवं आयुष्य का वरदान दिया था. अत: इस दिन को यम द्वितीया भी कहते हैं. यही कारण से इस दिन बहिन के हाथ से भोजन करने एवं भाई द्वारा शक्ति के अनुसार दक्षिणा देने का प्रावधान है. इस दिन बहन-भाई की रक्षा के लिए गोधन कूटती है. चौदह यमो में एक श्री चित्रगुप्त जी का भवन धर्मराज के पास में है. इस दिन पूजन प्रकरण में लोग अपनी आमद खर्च लिख कर आराध्य (चित्रगुप्त) के पास समर्पित करने के पश्चात् प्रसाद स्वरूप गुड़ और आदी लेने का नियम है. इस दिन बही-वसना की पूजन का विशेष महत्व है. ——नवीन चंद्र मिश्र ‘वैदिक’

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