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साक्षर बन जगा रहीं शिक्षा की अलख

डुमरांव : करीब दो दशक पूर्व की बात है. जब सरस्वती बैंक में पैसे जमा करने पहुंचीं, तो वहां एक बैंककर्मी ने उसकी निरक्षरता पर तंज कसा. बस यहीं से सरस्वती की जिंदगी में एक नया मोड़ आया. उन्होंने फैसला किया कि इस तंज के असर को व्यर्थ नहीं जाने देना है. उन्होंने निरक्षरता को […]

डुमरांव : करीब दो दशक पूर्व की बात है. जब सरस्वती बैंक में पैसे जमा करने पहुंचीं, तो वहां एक बैंककर्मी ने उसकी निरक्षरता पर तंज कसा. बस यहीं से सरस्वती की जिंदगी में एक नया मोड़ आया. उन्होंने फैसला किया कि इस तंज के असर को व्यर्थ नहीं जाने देना है. उन्होंने निरक्षरता को दूर करने की ठान ली. सातवीं पास सरस्वती आज फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती हैं. बात यहीं खत्म नहीं हुई.

सरस्वती ने अपनी निरक्षरता दूर करने के बाद जो आत्मविश्वास हासिल किया, उससे उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया और उन्होंने अंगूठा छाप लोगों और बच्चों को पढ़ाने की निर्णय लिया. 25 साल से वह आसपास के क्षेत्र में शिक्षा की अलख जगा रही हैं. साथ ही वह मां बनकर मुहल्ले के बच्चों की सेवा करती हैं. ममता लुटाती हैं. 65 वर्ष की उम्र में भी गरीबों और दबे-कुचले बच्चों के बीच शिक्षा का
साक्षर बन जगा…
अलख जगाना उनका मिशन बन गया है. 40 वर्ष की उम्र में सरस्वती ने निरक्षरता दूर करने का बीड़ा उठाया था, जो आज भी निरंतर जारी है. अब तक सैकड़ों बच्चों और लोगों को उसने साक्षर बनाया है. वह गरीब बच्चों को हर दिन दो घंटे पढ़ाती हैं. इस पर आने वाले खर्च का वहन भी खुद करती हैं. सरस्वती कहती है कि बच्चों की मुस्कुराहट और मासूमियत को देख कर मुझे आत्मिक संतुष्टि मिलती है और अपने बचपन की यादें भी ताजा हो जाती हैं.
आदतों में सुधार से बदल सकती है तकदीर
शहर के सफाखाना रोड मुहल्ला निवासी श्रीकांत की पत्नी सरस्वती का जीवन संघर्षों से भरा रहा. आज उनका बेटा इंजीनियर है. वह बताती हैं कि तकदीर बदलना हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन हम आदत जरूर बदल सकते हैं. संभव है कि इसी से तकदीर भी बदल जाये.

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