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डीएमसीएच में ठंड से ठिठुर रहे मरीज

टूटी खिड़की व दरवाजे से कहर बन रही ठंडी हवा खिड़की में परदा टांग कर मरीज करते हैं रतजगा अस्पताल का कंबल भी ठंड से निजात दिलाने में नाकाफी दरभंगा : कड़ाके की ठंड लगातार जारी है. पछुआ हवा ने सर्दी और बढ़ा दी है. यह पीड़ा डीएमसीएच के मरीजों के लिए काल बन गया […]

टूटी खिड़की व दरवाजे से कहर बन रही ठंडी हवा

खिड़की में परदा टांग कर मरीज करते हैं रतजगा
अस्पताल का कंबल भी ठंड से निजात दिलाने में नाकाफी
दरभंगा : कड़ाके की ठंड लगातार जारी है. पछुआ हवा ने सर्दी और बढ़ा दी है. यह पीड़ा डीएमसीएच के मरीजों के लिए काल बन गया है. अधिकांश भवन दरवाजे और खिड़की विहीन हैं. कमरों में तेज हवा के साथ कुहासा आ जाता है. ठंड में जच्चा-बच्चा रतजगा करते हैं. खिड़की और दरवाजे को चादर से ढकने का प्रयास किया जाता है लेकिन इसमें कम ही सफलता मिलती है. अस्पताल और मरीजों के खुद का कंबल भी ठंड से निजात दिलाने में सफल नहीं हो रहे. ठंड को लेकर कई वार्ड के बेड खाली पड़े हैं.
जच्चा-बच्चा को ज्यादा परेशानी
यह मौसम सबसे अधिक खतरनाक जच्चा-बच्चा के लिए है. नवजात शिशुओं को परिजन कपड़ों में लपेटकर रखते हैं. जच्चा की हालत अलग खराब रहती है. अस्पताल का कंबल और घर का गरम कपड़ा भी इस ठंड से निजात नहीं दिला पा रहा है. नवजात शिशुओं को 36.5 डिग्री से 37.5 डिग्री के तापमान पर रखना है. ऐसा नहीं होने पर नवजात हाइपोथर्मिया रोग होने का खतरा रहता है. इस रोग से मरीज की मौत होने का खतरा अधिक रहता है. उधर जच्चा का भी कम तापमान से कई रोग होने का खतरा रहता है.
रतजगा करते मरीज : खिड़की और दरवाजे विहीन कई वार्डों के मरीज रतजगा करते हैं. वार्ड में शाम से ही कुहासों का जाना शुरू हो जाता है. मरीजों को यहां ठंड से बचाव के अन्य तरकीब भी फेल हो जाते हैं. हाल यह होता है कि मरीज रतजगा करते हैं.
खिड़की में टंगा है चादर : कमरा में बड़े-बड़े नौ खिड़की और दो दरवाजे हैं. कई कमरों के सभी दरवाजे और खिड़की में पल्ला नहीं लगा है. खिड़कियां व दरवाजों पर परिजन चादर टांगकर ठंड से बचने के उपाय करते हैं.
सर्जिकल भवन की स्थिित बदहाल सबसे अधिक खराब स्थिति सर्जिकल भवन की है. गायनिक और शिशु रोग वार्ड भी इसी तरह का है. तीन तल्ला सर्जिकल भवन के किसी भी वार्ड में दरवाजे और खिड़की नहीं लगे हैं. गायनिक और नवजात शिशु रोग वार्ड के कमरों में खिड़की और दरवाजे तो लगे हैं लेकिन उनके शीशे टूटे हैं. अन्य वार्डों के खिड़की-दरवाजों की हालत कमोबेश ठीक है.
डेढ़ साल पहले लगाया गया था शीशा
ठंड से निजात दिलाने के लिए डेढ़ साल पूर्व टूटे दरवाजे और खिड़कियों में शीशे लगे थे. शीशे डेढ़ साल के भीतर ही टूट गये.
अस्पताल अधीक्षक डॉ एसके मिश्रा के मोबाइल नंबर 9470003252 पर कॉल किया गया. उधर से कॉल रिसीव नहीं किया गया.
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ रिजवान हैदर ने बताया कि नवजात शिशुओंको 36.5 से 37.5 डिग्री तक के तापमान पर रखना है. ऐसा नहीं होने पर बच्चों को हाइपोथर्मिया रोग होने का खतरा हो सकता है.
टूटी खिड़की में ठंड से बचने को टंगा कपड़ा.
गेट विहीन खिड़की के कारण खाली पड़े बेड.

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