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मैथिली के प्रथम कलाकार के घर तीसरा पुरस्कार

मैथिली के प्रथम कलाकार के घर तीसरा पुरस्कारलब्धप्रतिष्ठ कथाकार प्रो हरिमोहन झा के दूसरे सुपुत्र को मिलेगा अकादमी अवार्ड दरभंगा मैथिली साहित्य की सुदीर्घ परंपरा है. वैसे तो कई ऐसी रचनाएं हैं, जो लिखित में नहीं मिलती, लेकिन उसका रचनाकाल अति प्राचीन माना जाता है. मैथिली के प्रथम कथाकार जनार्दन झा जनसीदन को माना जाता […]

मैथिली के प्रथम कलाकार के घर तीसरा पुरस्कारलब्धप्रतिष्ठ कथाकार प्रो हरिमोहन झा के दूसरे सुपुत्र को मिलेगा अकादमी अवार्ड दरभंगा मैथिली साहित्य की सुदीर्घ परंपरा है. वैसे तो कई ऐसी रचनाएं हैं, जो लिखित में नहीं मिलती, लेकिन उसका रचनाकाल अति प्राचीन माना जाता है. मैथिली के प्रथम कथाकार जनार्दन झा जनसीदन को माना जाता है. ताराक वैधव्य शीर्षक कथा मैथिली की पहली कहानी मानी जाती है. जनसीदनजी को मैथिली का प्रथम उपन्यासकार भी माना जाता है. मैथिली का पहला उपन्यास इन्होंने निर्दय सासु लिखा था. 2015 के साहित्य अकादेमी पुरस्कार के लिए चयनित प्रो मनमोहन झा इन्हीं के पौत्र हैं. यह परिवार शीर्षस्थ साहित्यकार श्रेणी में है. जनसीदनजी दरभंगा में भी काफी समय तक रहे. मिथिला मिहिर के प्रबंध संपादक का दायित्व निभाया. इनके पुत्र देश-विदेश में मैथिली को पहचान दिलाने वाले मशहूर कथाकार प्रो हरिमोहन झा थे. जनसीदनजी को तो साहित्य अकादेमी पुरस्कार नहीं मिला, लेकिन इसके बाद तीन सदस्यों को यह पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य हासिल हुआ. मनमोहन झा तीसरे रचनाकार हैं. इनसे पूर्व इनके पिता प्रो झा को मरणोपरांत यह पुरस्कार प्रदान किया गया था. इनकी आत्मकथा जीवनयात्रा के लिए इन्हें वर्ष 1985 में इस पुरस्कार से नवाजा गया. इसके बाद इनके पुत्र राजमोहन झा को कथासंग्रह आई-काल्हि-परसु के लिए साल 1996 में यह पुरस्कार दिया गया. इसके बाद 2015 में मनमोहन झा को कथा विधा में ही मौलिक रचना के लिए अकादेमी पुरस्कार देने की घोषणा की गयी.

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