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धन उपार्जन के लिए किया जाने वाला हर कार्य श्रम : डा. नवल

धन उपार्जन के लिए किया जाने वाला हर कार्य श्रम : डा. नवल फोटो::::::::::8,9परिचय : सेमिनार को संबोधित करते मुख्य अतिथि डा. नवल किशोर चौधरी, सेमिनार में मौजूद गणमान्य लोग. अर्थशास्त्र विभाग में दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार शुरू दरभंगा : ललित नारायण मिथिला विवि के पीजी अर्थशास्त्र विभाग की ओर से शुक्रवार को विवि के […]

धन उपार्जन के लिए किया जाने वाला हर कार्य श्रम : डा. नवल फोटो::::::::::8,9परिचय : सेमिनार को संबोधित करते मुख्य अतिथि डा. नवल किशोर चौधरी, सेमिनार में मौजूद गणमान्य लोग. अर्थशास्त्र विभाग में दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार शुरू दरभंगा : ललित नारायण मिथिला विवि के पीजी अर्थशास्त्र विभाग की ओर से शुक्रवार को विवि के प्रबंधन विभाग के सभागार में यूजीसी संपोषित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन मंचासीन अतिथियों ने संयुक्त रूप से दीप जला कर किया.बिहार में बाल श्रम : उन्मूलन, विमुक्ति एवं पुनर्वास विषय पर आयोजित इस सेमिनार को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए पटना विवि के पूर्व अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष डा. नवल किशोर चौधरी ने कहा कि बच्चों को काम नहीं करना चाहिए. उन्हें खेलने एवं स्कूल जाने का अवसर मिलना चाहिए, जो एक स्वभाविक प्रक्रिया है. लेकिन हकीकत ठीक इसके विपरीत है. उन्होंने श्रम को परिभाषित करते हुए कहा कि जिसका उद्देश्य धन उपार्जन के रूप में लिया जाता है उसे श्रम माना जाता है. उसमें मानसिक और शारीरिक दोनों श्रम शामिल हैं. डा. चौधरी ने उदाहरण पेश करते हुए कहा कि बड़ी अजीब बात है कि एक बच्चा चाय की दुकान पर काम करता है तो हम कहते हैं कि वह बाल श्रमिक है. जबकि उसी उम्र का कोई बच्चा फिल्मों या सीरियलों में काम करता है तो उसे हम बाल कलाकार कहते हैं. उसे बालश्रम संरक्षण कानून से अलग माना जाता है. जबकि उनका भी मानसिक एवं शारीरिक दोहन होता है. उन्होंने कहा कि बालकों का निर्धारित उम्र सीमा के बच्चे यदि श्रम करते हैं तो इससे उसके मानसिक शारीरिक विकास प्रभावित होते हैं. उन्हें उनके उम्र के हिसाब से खेलना और पढ़ना चाहिए. वैसे ही यहां की शिक्षा पद्धति ऐसी है कि उम्र के हिसाब से उसके ऊपर पढ़ाई का बोझ भी अधिक ही हो जाता है. वैसे अगर गौर किया जाये तो आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों के अधिकांश बच्चे श्रम करने को मजबूर हैं. उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. साकेत कुशवाहा ने अध्यक्षीय भाषण करते हुए कहा कि बालश्रम को अलग अलग जगहों पर अलग अलग तरीकों से परिभाषित किया जाता है. बालश्रम का सीधा संबंध गरीबी और परिवार की आर्थिक स्थिति से जुड़ा है. उन्होंने कहा कि इसका पूर्ण रूप से उन्मूलन तो संभव नहीं है लेकिन जागरूकता के सहारे इसमें कमी लायी जा सकती है. प्रो. कुशवाहा ने कहा कि जिन जगहों पर बाल श्रम की अधिकता है वहां पर रोकने के लिए विशेष नीति बनानी चाहिए. इस सत्र को बतौर विशिष्ट अतिथि एएन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान पटना के पूर्व निदेशक प्रो. डीएम दिवाकर, बीआर अम्बेदकर बिहार विवि के पूर्व कुलपति प्रो. पीके राय सहित कई विद्वानों ने संबोधित किया. कार्यक्रम के दौरान हीं क्रांतिदूत नामक पुस्तक का लोकार्पण किया गया. सेमिनार के संयोजक सह पीजी अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. रामभरत ठाकुर ने आगत अतिथियों का स्वागत एवं मंच संचालन किया.

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