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पलायन का दर्द : न नरेगा ने रोका और न रोक पा रही मनरेगा, धान रोपने के लिए पंजाब-हरियाणा चले मिथिला के मजदूर

नवेंदू शेखर दरभंगा : मलमास में कोई शुभ कार्य नहीं होता. यात्रा से भी परहेज का विधान है, लेकिन पेट की आग ने मिथिला क्षेत्र के मजदूरों को इस विधान व परंपरा को तोड़ने के लिए विवश कर दिया है. रोजी-रोटी की जुगाड़ में मिथिला के मजदूर इन दिनों पंजाब व हरियाणा जा रहे हैं. […]

नवेंदू शेखर
दरभंगा : मलमास में कोई शुभ कार्य नहीं होता. यात्रा से भी परहेज का विधान है, लेकिन पेट की आग ने मिथिला क्षेत्र के मजदूरों को इस विधान व परंपरा को तोड़ने के लिए विवश कर दिया है. रोजी-रोटी की जुगाड़ में मिथिला के मजदूर इन दिनों पंजाब व हरियाणा जा रहे हैं. अपने गांव में काम मिल नहीं रहा. न तो मनरेगा से रोजगार मिल रहा है और न निजी स्तर से ही काम मिल रहा है.
लिहाजा, परिजनों से सैकड़ों किलोमीटर दूर पलायन करना पड़ रहा है. पिछले सप्ताह भर से दरभंगा जंक्शन भीड़ से पटा है. दिल्ली के लिए जाने वाली ट्रेनों में पैर रखने की जगह मुश्किल से मिल रही है.
परंपरा सी बन गयी पलायन : मिथिलांचल में रोजगार के सीमित संसाधन हैं. बड़ी आबादी कृषि कार्य पर ही निर्भर है. किसी साल बाढ़ तो किसी वर्ष सुखाड़ खेती चौपट कर जाती है. लिहाजा इस क्षेत्र में पलायन परंपरा सी बन गयी है.
रोजगार के अवसर मुहैया कराने के लिए चल रही योजना का सिर्फ नाम ही बदला है, उसके फलाफल में कोई फर्क नहीं आया है. जब नरेगा नाम से योजना थी, तब भी काम नहीं मिलता था, आज मनरेगा है, तो भी मजदूर जॉब कार्ड लेकर पलायन करने के लिए विवश हैं.
तीसरी पीढ़ी जा रही परदेस : घोघरडीहा के मनराजी चौपाल ने बताया कि पहले दादाजी गये. उसके बाद पिताजी जाने लगे और अब मेरी बारी है. हरियाणा में ठीक-ठाक मजदूरी मिल जाती है. इसके उलट यहां काम के लिए टकटकी लगाये रहते हैं. घर का चूल्हा जलना मुश्किल है. इसलिए हरियाणा जा रहे हैं.
यात्रियों की भीड़ में दोगुना इजाफा : सर्वाधिक भीड़ दिल्ली की ओर जानेवाली ट्रेनों में नजर आ रही है. मुख्य रूप से पंजाब तथा हरियाणा जानेवाली ट्रेनें खचाखच भरी रहती हैं. रेलवे ने इसे देखते हुए अमृतसर के लिए यहां से हर रोज जननायक एक्सप्रेस चला रखा है. आमतौर पर औसतन प्रतिदिन इस ट्रेन में जहां 1500 से 2000 यात्री सफर करते हैं,वहीं इन दिनों यह संख्या बढ़कर चार हजार के करीब पहुंच गयी है.
एक दिन पहले पहुंच जाते हैं यात्री : स्थिति यह है कि यात्रा के लिए एक दिन पहले ही लोग जंक्शन पर पहुंच जाते हैं. सीतामढ़ी के नानपुर से आये रघुवर मुखिया का कहना था कि सोच कर आया था कि एक दिन पहले जाने पर अगले दिन ट्रेन में जगह मिल जायेगी, लेकिन टिकट लेने के बावजूद ट्रेन में नहीं चढ़ सके. अब कल कोशिश करेंगे.
डूब जाता है टिकट का पैसा : यात्री ट्रेन का टिकट समय पर तो ले लेते हैं, लेकिन गाड़ी में भीड़ की वजह से नहीं चढ़ पाने के कारण जब उसे वापस करने जाते हैं, नये नियम का हवाला देते हुए काउंटर पर तैनात कर्मी इसे वापस करने से इंकार कर देता है. मालूम हो कि टिकट कटाने के चार घंटे के अंदर ही टिकट वापसी का प्रावधान है. इस वजह से सबसे अधिक परेशानी गरीब तबके के यात्रियों को हो रही है.

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