दरभंगा : छठ पर्व संपन्न होने के साथ ही मिथिला का लोकपर्व सामा-चकेवा शुरू हो गया. यह लोकपर्व बहन-भाई के बीच निश्चल प्रेम को दर्शाता है. छठ के पारन दिन से बहनें भाइयों की सलामती के लिये कार्तिक पूर्णिमा तक प्रत्येक दिन इस खेल का आयोजन करती है. शुक्रवार को बहनें सामा-चकेवा, चुगला, सतभईया, वृंदावन […]
दरभंगा : छठ पर्व संपन्न होने के साथ ही मिथिला का लोकपर्व सामा-चकेवा शुरू हो गया. यह लोकपर्व बहन-भाई के बीच निश्चल प्रेम को दर्शाता है. छठ के पारन दिन से बहनें भाइयों की सलामती के लिये कार्तिक पूर्णिमा तक प्रत्येक दिन इस खेल का आयोजन करती है. शुक्रवार को बहनें सामा-चकेवा, चुगला, सतभईया, वृंदावन आदि की खरीद की. कुम्हारों के दुकानों में इसे लेकर काफी भीड़ रही. हालांकि कुंभकारों की माने, तो धीरे-धीरे ग्राहकों की संख्या कम होती जा रही है.
बावजूद सामा-चकेवा लेने पहुंची लड़कियां के चेहरे पर खुशी देखते बन रही थी. कई परिवार के बुजुर्ग सदस्य बच्चों के साथ सामा-चकेवा खरीदने पहुंचे थे. बहनें शाम में डाला में सामा-चकेवा आदि की मूर्ति सजाकर सड़क किनारे तथा देव स्थान में सामूहिक रूप से बैठकर सामा-खेलती दिखीं. इस दौरान भाई-बहन से जुड़े गीतों को भावपूर्ण रूप से गायन किया गया.
सामा खेलने मायके आती हैं बेटियां: मिथिला में सामा-चकेवा खेलने के लिए विवाहित बेटियां मायका आ जाती है. सखी-सहेलियों के साथ पूर्णिमा तक प्रतिदिन वे सामा-चकेवा का खेल खेलती है. शाम होते ही गांवों की गलियों एवं नगर के चौराहे पर डाला में सामां-चकेवा लेकर लड़कियां व महिलाएं सामां खेलने बैठ जाती है.
तरह-तरह के गीत गाये जाते हैं. भाई बहन के प्रेम के अलावा भाभी के उपालंभ से जुड़ी गीतों की बहुतायत रहती है. खेल में परिवार की अन्य महिला सदस्य भी भाग लेती है. सामा की विदाई कार्तिक पूर्णिमा को दी जाती है. इस दिन बेटी विदाई का माहौल घर-घर में बन जाता है. नम आंखों से समदाउन गीतों के बीच सामा को नदियों, तालाबों में भंसा दिया जाता है. इससे पूर्व बहने भाई का ठेकुआ, मुढ़ी, भुसवा आदि देती है. इस परंपरागत खेल के प्रति वैसे आकर्षण की कमी साफ नजर आ रही है.