जागरूकता. अंतरराष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस पर एनसीसी कैडेटों ने निकाली रैली
Advertisement
थैलेसीमिया से जागरूकता ही बचाव
जागरूकता. अंतरराष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस पर एनसीसी कैडेटों ने निकाली रैली थैलेसीमिया के बारे में कर्नल व एनसीसी शिक्षकों ने दी कैडेटो को जानकारी बक्सर/डुमरांव : अंतरराष्ट्रीय थैलेसिमिया दिवस के अवसर पर 30 बिहार बटालियन एनसीसी ने जागरूकता रैली निकाली. रैली में एमपी उच्च विद्यालय पीसी कॉलेज, एमवी कॉलेज, इंदिरा उच्च विद्यालय के छात्रों ने भाग […]
थैलेसीमिया के बारे में कर्नल व एनसीसी शिक्षकों ने दी कैडेटो को जानकारी
बक्सर/डुमरांव : अंतरराष्ट्रीय थैलेसिमिया दिवस के अवसर पर 30 बिहार बटालियन एनसीसी ने जागरूकता रैली निकाली. रैली में एमपी उच्च विद्यालय पीसी कॉलेज, एमवी कॉलेज, इंदिरा उच्च विद्यालय के छात्रों ने भाग लिया. रैली को समादेशी पदाधिकारी कर्नल पीएल जयराम ने संबोधित किया और थैलेसिमिया रोग का कारण लक्षण, निदान और उपचार संबंधित जानकारी दी. रैली को संबोधित करते हुए उप ग्रुप समादेष्टा, एनसीसी ग्रुप मुख्यालय, गया कर्नल राजीव मल्होत्रा ने रैली को हरी झंडी दिखा कर रवाना किया.
रैली में सूबेदार उमेश तिवारी, बीएचएम आरके उपाध्याय, हवलदार अमरेंद्र शर्मा, हवलदार आरके त्रिपाठी, हवलदार जसवंत सिंह आदि ने भाग लिया. डुमरांव प्रतिनिधि के अनुसार अंतरराष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस पर सोमवार को 30 बिहार बटालियन बक्सर के समादेशीय पदाधिकारी कर्नल पीएल जयराम के नेतृत्व में रैली का आयोजन किया गया. रैली का शुभारंभ प्लस टू राज हाइस्कूल के प्रधानाध्यापक राज रोशन प्रसाद डुमरांव ने हरी झंडी दिखा कर रवाना किया.
रैली में डीके काॅलेज डुमरांव, प्लस टू राज हाइस्कूल, प्लस टू महारानी उषारानी बालिका उच्च विद्यालय और सुमित्रा महिला कॉलेज के कैडेटों ने भाग लिया. रैली राज हाइस्कूल डुमरांव से स्टेशन रोड, गोला रोड होते हुए राजगढ़ तक पहुंची व पुनः वापस आने पर कैडेटों को थैलेसीमिया से संबंधित बातों पर प्रकाश डाला गया. थैलेसीमिया एक प्रकार की अनुवांशिक बीमारी है, जो प्रायः बच्चों में होती है. इस बीमारी में आरबीसी की जीवन काल घट जाता है, जिससे शरीर में हिमोग्लोबीन की कमी होने लगती है,
जिसके कारण रोगी की मृत्यु तक हो जाती है. इसके निराकरण का सरल उपाय यह है कि माता-पिता इस रोग की लक्ष्ण को पहचान कर डाॅक्टर से इलाज कराएं अन्यथा संतान में यह रोग होने के पश्चात उचित इलाज नहीं है. साथ ही कैडेटों को रक्तदान करने के लिए प्रेरित किया गया. रैली के संचालन में फर्स्ट आॅफिसर फरहत अफसां, सीटीओ डाॅ अमृता सिंह, अभ्यानंद प्रजापति एवं हवलदार अखिलेश कुमार साथ ही विद्यालय के शिक्षक विजय नारायण सिंह, लक्ष्मण सिंह आदि मौजूद थे़
थैलेसीमिया एक गंभीर बीमारी है
इससे केवल दो तरीके से रोका जा सकता है. शादी से पहले वर-वधु के रक्त की जांच हो और यदि जांच में दोनों के रक्त में माइनर थैलेसीमिया पायी जाये, तो बच्चे को मेजर थैलेसीमिया होने की पूरी संभावना बन जाती है.
ऐसी स्थिति में मां के दस सप्ताह तक गर्भवती होने पर पल रहे शिशु की जांच होनी चाहिए. इससे गर्भ में पल रहे बच्चे में थैलेसीमिया की बीमारी का पता लगाया जा सकता है. दूसरा उपाय यह कि यदि विवाह के बाद माता-पिता को पता चले कि शिशु थैलेसीमिया से पीड़ित है, तो बोन मेरो ट्रांसप्लांट पद्धति से शिशु के जीवन को सुरक्षित किया जा सकता है. शिशु जन्म के पांच महीने की उम्र से ही थैलेसीमिया से ग्रस्त हो जाता है और उसे हर महीने रक्त ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़ती है. थैलेसीमिया से पीडि़त बच्चे एक निश्चित उम्र तक ही जीवित रह पाते हैं.
थैलेसीमिया के कारण लाल रक्त कणों की उम्र कम हो जाती
महिलाओं व पुरुषों के शरीर में क्रोमोजोम की खराबी माइनर थैलेसीमिया होने का कारण बनती है. यदि दोनों ही मानइर थैलेसीमिया से पीड़ित होते हैं, तो शिशु को मेजर थैलेसीमिया होने की संभावना बढ़ जाती है. जन्म के तीन महीने बाद ही बच्चे के शरीर में खून बनना बंद हो जाता है और उसे बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है.
सामान्य रूप से शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है, लेकिन थैलेसीमिया के कारण लाल रक्त कणों की उम्र कम हो जाती है. इस कारण बार-बार शिशु को बाहरी रक्त चढ़ाना पड़ता है. ऐसी स्थिति में अधिकांश माता-पिता बच्चे का इलाज कराने में अक्षम हो जाते हैं, जिससे 12 से 15 वर्ष की आयु में बच्चों की मृत्य हो जाती है.
बीमारी का यह है लक्षण
जन्म के पांच महीने के बाद यदि माता-पिता को ऐसा महसूस हो कि शिशु के नाखून और जीभ पीले हो रहे हैं, बच्चे के जबड़े और गाल असामान्य हो गये हैं, शिशु का विकास रुकने लगा है, वह अपनी उम्र से काफी छोटा नजर आने लगे, चेहरा सूखा हुआ रहे, वजन न बढ़े, हमेशा कमजोर और बीमार रहे, सांस लेने में तकलीफ हो और पीलिया या जॉइंडिस का भ्रम हो, तो तुरंत विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. ये लक्षण थैलेसीमिया के भी हो सकते हैं. यदि जांच के बाद थैलेसीमिया की पुष्टि हुई, तो बोन मेरो ट्रांसप्लांट द्वारा शिशु के जीवन को सुरक्षित किया जा सकता है.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement