नोटबंदी का असर 1.5 लाख से अधिक कुपोषित बच्चे व महिलाएं होंगी वंचित
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राशि के अभाव में पोषाहार पर संकट
नोटबंदी का असर 1.5 लाख से अधिक कुपोषित बच्चे व महिलाएं होंगी वंचित बक्सर : नोटबंदी के पेच में जिले के करीब 1.5 लाख से अधिक कुपोषित, अति कुपोषित बच्चे, महिलाएं व किशोरियों के मुंह का निवाला फंस गया है. राशि की उपलब्धता के बावजूद बैंकों से राशि की निकासी नहीं हो पा रही है. […]
बक्सर : नोटबंदी के पेच में जिले के करीब 1.5 लाख से अधिक कुपोषित, अति कुपोषित बच्चे, महिलाएं व किशोरियों के मुंह का निवाला फंस गया है. राशि की उपलब्धता के बावजूद बैंकों से राशि की निकासी नहीं हो पा रही है. बचे चार दिनों में यदि पोषाहार राशि की निकासी नहीं होती है, तो अगले एक माह तक 1.5 लाख से अधिक कुपोषित, अति कुपोषित बच्चे, महिलाएं, किशोरियां को पोषाहार मिलना मुश्किल हो जायेगा और अब तक उनके सेहत में सुधार के लिए जो भी उपाय किये गये हैं, उसका लेवल गड़बड़ा जायेगा. कहने का मतलब यह है कि 1.5 लाख से अधिक लाभुकों का भोजन बंद हो जायेगा.
स्वास्थ्य विभाग के विशेषज्ञों का कहना है कि एक बार अगर उनके पोषाहार का लेवल कम कर दिया जायेगा या बंद कर दिया जाये, तो पुन: उसी लेवल पर लाने में काफी समय लग जायेगा.
इन सभी को मिलता है पोषाहार :
जिले में मेन और मिनी आंगनबाड़ी केंद्रों की संख्या करीब 1529 है. इनमें 1489 ही कार्यरत हैं. प्रत्येक केंद्र पर 03 से 06 वर्ष के 40 बच्चे स्कूल पूर्व शिक्षा पाते हैं. उनके अलावा 28 कुपोषित एवं 12 अति कुपोषित बच्चे, 08 गर्भवती, 08 प्रसूता महिलाओं को प्रतिमाह टीएचआर यानी सूखा राशन मिलता है. पोषाहार के लिए एक आंगनबाड़ी केंद्र को 15 हजार 775 रुपये का आवंटन होता है. यानी जिले में दो करोड़ 20 लाख 27 हजार एक सौ रुपये बैंक खाता के जरिये उपलब्ध कराये जाते हैं. उपलब्ध राशि से आंगनबाड़ी विकास समिति की देखरेख में सेविकाएं जरूरी सामग्री का क्रय करती हैं. महिला पर्यवेक्षिका एवं स्थानीय स्तर पर गठित अनुश्रवण समिति की देखरेख में प्रत्येक माह 15 अथवा 22 को एक साथ पूरे जिले में टीएचआर का वितरण कराया जाता है.
राशि नहीं निकलने पर हो जाती है लैप्स : किसी कारणवश बैंक से राशि की निकासी नहीं हो पायी, तो एकल अथवा सामूहिक रूप से केंद्रों को मिलनेवाली राशि लैप्स हो जाती है. अगले माह केंद्र को राशि नहीं मिल सकती. प्रत्येक माह के लिए परियोजना से एडवाइस बैंक को भेजा जाता है, तभी सभी केंद्रों के खाते में राशि ट्रांसफर होती है.
बाधित नहीं होना चाहिए पोषाहार कार्यक्रम : कुपोषित, अति कुपोषित बच्चों, ग्रामीण क्षेत्र के कमजोर वर्ग की ज्यादातर गर्भवती, प्रसूति महिलाएं एनीमिया की शिकार पायी जाती हैं. कुपोषण, रक्ताल्पता दूर करने के लिए ही भारत सरकार का महिला एवं बाल विकास मंत्रालय पोषाहार कार्यक्रम चल रहा है. केंद्र प्रायोजित अन्य कार्यक्रमों के तरह ही इस कार्यक्रम में राज्य सरकार की अहम भागीदारी है. पोषण स्तर बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सरकार ने समेकित बाल विकास सेवा परियोजना को निर्देश दे रखा है कि किसी कीमत पर पोषाहार कार्यक्रम बाधित नहीं होना चाहिए.
पोषाहार नियमित होना चाहिए :
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ गांगे राय, कार्डियोलॉजिस्ट डॉ अरुण कुमार, स्त्री एवं प्रसव रोग विशेषज्ञ डॉ मधु सिंह ने बताया कि कुपोषण का शिकार बच्चे हों या एनीमिया की शिकार महिलाएं. न्यूट्रीशन लेवल बनाये रखने के लिए पौष्टिक आहार सतत जारी रखा जाना चाहिए. एक बार शुरू कर बीच में रोक दिया जाये, तो बैलेंस गड़बड़ हो जाता है.
नोटबंदी के कारण हुई है परेशानी
नोटबंदी के कारण वास्तव में टीएचआर का निर्धारित समय बीत चुका है. पोषाहार कार्यक्रम बाधित न हो इसके लिए डीएम रमण कुमार ने खासतौर पर दिशा-निर्देश दिया है. बैंकों को एडवाइस भेजा जा चुका है. बैंकों से संपर्क कर निकासी करने का प्रयास किया जा रहा है.
शशिकांत पासवान, डीपीओ, आइसीडीएस
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