बक्सर : रामलीला समिति, बक्सर के तत्वावधान में शहर के किला मैदान में आयोजित 22 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के तहत रामलीला व कृष्णलीला का मंचन किया जा रहा है. श्री रामलीला समिति के तत्वावधान में वृंदावन से पधारे सुप्रसिद्ध रामलीला मंडल के ब्रजधाम नंद नंदल संस्थान के स्वामी श्री करतार प्रपन्नाचार्य जी महाराज के निर्देशन व प्रख्यात व्यास आचार्य गणेश चंद्र दीक्षित जी महाराज के प्रसंग गायन शुरू हुआ. शुक्रवार की सुबह में श्रीकृष्णलीला में ‘मुंदरी चोरी लीला’ का मंचन हुआ. इसमें दिखाया गया कि राधाजी को कन्हैया नृत्य हृदय से विचार करते हैं. सखियों ने कहा कि कन्हैया तो माखनचोर हैं. कहीं, वह आपकी कोई वस्तु ना चुरा लें. फिर भी राधा नहीं मानती हैं और नृत्य सिखने कान्हा के पास चली जाती हैं. नृत्य सिखाते-सिखाते कान्हा राधा के हाथों की मुंदरी चुरा लेते हैं.
लौट कर आने पर सखियों ने राधा का शृंगार देखा, तो मुंदरी गायब थी. उसके बाद वह कान्हा की तलाशी लेने पहुंचीं. तलाशी के क्रम में कान्हा के कमर से मुंदरी निकल जाती है. उसके बाद वह चली जाती हैं. संकोच वश श्रीकृष्ण अपने घर नहीं जाते और जंगल में ही सो जाते हैं. इधर, राधा की सखियां कान्हा का मोरपंख, वंशी, सिरपेंच, कुंडल, कमली, लकुट, पायल आदि चुरा लेती हैं. दूसरे दिन कान्हा अपने घर में उक्त वस्तुएं नहीं देखते हैं, तो वह चोरी का कारण समझ जाते हैं.
भरत ने राज सिंहासन पर स्थापित की श्रीराम की चरण पादुका : गुरुवार की देर रात ‘दशरथ मरण, भरत मिलाप और जयंत पर कृपा’ प्रसंग का मंचन हुआ. इसमें दिखाया गया कि मंत्री सुमंत प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण और सीता को राज्य के बाहर छोड़ कर आते हैं. यहां से केवट उन्हें नदी पार कराते हैं. इधर, निषाद राज लौटने के क्रम में मंत्री सुमंत से मिलते हैं. इधर, राम-लक्ष्मण और माता सिता चित्रकुट पर्वत पहुंच जाते हैं. शांयकाल को मंत्री महल पहुंच कर राजा दशरथ को घटनाक्रम सुनाते हैं. यह सुन कर राजा अचेत होकर गिर पड़ते हैं.
श्रीराम के जाने के दुख के कारण काफी दुखित होते हैं और कुछ दिनों बाद उनका देहांत हो जाता है. महाराज की मृत्यु के बाद गुरु वशिष्ट ने भरत को बुलाने के लिए संदेश उनके ननिहाल भेजा. महाराज की मृत्यु और श्रीराम के वनवास की खबर को सुन भरत तत्काल अयोध्या लौटते हैं, जहां पहुंच वह महाराज का अंतिम संस्कार करते हैं. इसके बाद वह राम को वापस लाने के लिए चित्रकुट रावाना होते हैं, जहां श्रीराम अपने चरण पदुका दे देते हैं, लेकिन, पिता का वचन नहीं तोड़ने की बात कहते हैं. चरण पादुका लेकर भरत अयोध्या आते हैं और राज सिंहासन पर श्रीराम के चरण पादुका को स्थापित करते हैं.