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भभुवर नुआंव गांव में बदला जीवन, जलने लगीं बत्तियां

125 घरों में से मात्र 15 घर शिविर न लगने से लालटेन युग में रह रहे हैं किसानी के लिए अलग ट्रांसफॉर्मर लगने का ग्रामीण कर रहे इंतजार बक्सर : बक्सर शहर से मात्र 8 किलोमीटर दूर भभुवर नुआंव में एक तरफ बिजली आने से खुशी है, वहीं दूसरी तरफ अब तक बिजली का उपयोग […]

125 घरों में से मात्र 15 घर शिविर न लगने से लालटेन युग में रह रहे हैं
किसानी के लिए अलग ट्रांसफॉर्मर लगने का ग्रामीण कर रहे इंतजार
बक्सर : बक्सर शहर से मात्र 8 किलोमीटर दूर भभुवर नुआंव में एक तरफ बिजली आने से खुशी है, वहीं दूसरी तरफ अब तक बिजली का उपयोग खेतों के लिए नहीं होने से मन में संशय बना हुआ है. आजादी के बाद से गांव के लोगों ने पहली बार जहां बिजली देखी और बेचिरागी गांवों से रोशनीवाले गांवों में गांव का नाम दर्ज हो गया. यह सब हुआ पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्राम विद्युतीकरण योजना से, जिसे केंद्र सरकार ने बेचिरागी गांवों को रोशनी देने का अभियान चला रखा है.
इस गांव में अधिकतर गरीब परिवार के लोग रहते हैं और उनके घरों में बिजली कभी आयेगी इसकी उम्मीद भी नहीं थी. मगर अब गांव के लोग बिजली बत्ती में रहते हैं, पंखे के नीचे सोते हैं और घर की महिलाएं लोकप्रिय टीवी सीरियल देखती हैं. पूरे गांव का जीवन ही बदल गया है और लोग आधुनिकता के युग में आ गये हैं. 125 घरवाले भभुअर नुआंव गांव में राजपूत, ब्राह्मण जाति के 84 घर गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने वाले हैं. इसके अतिरिक्त करीब 40 से अधिक घर गरीबी रेखा से ऊपर वाले हैं, मगर उनकी भी स्थिति सामान्य से ज्यादा अच्छी नहीं है.
पिछले दिनों बीपीएल के 84 परिवारों को मुफ्त में बिजली दी गयी और एक-एक एलइडी बल्ब दिया गया, जिससे मानों उस गांव के लोगों का उत्साह का ठिकाना नहीं रहा. 40 एपीएल परिवारों में से 25 एपीएल परिवारों ने बिजली का कनेक्शन ले लिया है, मगर अब भी 15 परिवार ऐसे हैं जिन लोगों के यहां बिजली नहीं है और लालटेन युग में जी रहे हैं
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहत जब गांव में बिजली आयी तब बिजली विभाग के अधिकारियों ने आश्वासन दिया था कि कैंप लगा कर सभी एपीएल परिवारों को बिजली दे दी जायेगी, मगर आज तक कैंप नहीं लगा. जबकि बिजली आये छह माह से अधिक हो गये. कैंप नहीं लगने से एपीएल के करीब 15 परिवार आज भी लालटेन युग में हैं और कनेक्शन नहीं ले पाये हैं.
30 साल पहले लोगों ने किया था आंदोलन : आजादी के बाद से बिजली की बत्ती का सपना देखनेवाले इस गांव के लोगों ने करीब 30 साल पहले वर्ष 1984-85 में बिजली के लिए उग्र आंदोलन छेड़ा था. उनके आंदोलन के बाद बिजली विभाग ने सक्रियता भी दिखायी थी.
गांव में पोल और तार लग गये थे, मगर बिजली का कनेक्शन नहीं होने से चोरों ने पोलों के तार तक काट लिया था. सिर्फ खंभा बच गया था. उस आंदोलन के बाद से ग्रामीण ठंडे पड़ गये और फिर कभी बिजली आयेगी उसका ख्वाब तक देखना बंद कर दिया. अब बिजली आ गयी, तो खेतों में पानी पहुंचाने की समस्या सामने आ गयी. गांव के लोगों के लिए एक ट्रांसफॉर्मर लगे हैं, जिससे घरों की बत्ती जलती है.
अब खेतों को पानी पिलाने के लिए गांव के लोग लगे हैं. बिजली विभाग ने ग्रामीणों को आश्वास्त किया है कि एक ट्रांसफॉर्मर पटवन के लिए अलग से लगेगा, तभी बिजली से मोटर चल पायेगा और फिर खेतों को पानी मिलेगा. मगर यह सपना भी कब साकार होगा इसे बिजली विभाग के अधिकारी और ग्रामीण बताने में असमर्थ हैं.

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