बक्सर, कोर्ट : भारतीय दंड विधान की धारा 124(ए) राष्ट्रद्रोह से संबंधित धारा है. इसमें संलिप्त अभियुक्त को तीन वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है. यह धारा न सिर्फ अजमानतीय है बल्कि संज्ञेय होने के साथ-साथ नन कंपाउंडेबुल यानी जिसका समझौते के आधार पर निष्पादन नहीं किया जा सकता है.
बक्सर व्यवहार न्यायालय तो वैसे अपना शतक जमा चुका है लेकिन प्राप्त जानकारी के अनुसार आजादी के बाद अब तक यहां एक भी राष्ट्रद्रोह के मामले नहीं दाखिल किये गये. विगत दिनों जेएनयू में राष्ट्र द्रोह की घटनाओं के बाद अचानक उक्त धारा पूरी तरह चर्चा में आ गया है. दिल्ली में अधिवक्ताओं ने इसको लेकर एक बड़े जुलूस का आयोजन भी किया. वहीं बक्सर व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ताओं की राय प्रभात खबर ने टटोलने की कोशिश की.
अधिवक्ताओं ने कहा
अधिवक्ता दामोदर प्रसाद का कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए उसका राष्ट्र सर्वोपरि है हर देश का अपना-अपना कानून होता है. जिसे वहां के निवासियों के अनुरूप तैयार किया जाता है. तथा सभी को उस कानून को मानना पड़ता है.
सिविल मामलों के अधिवक्ता ज्योति शंकर ने कहा कि देश परंपरा, धर्म, नियम, कानून व संविधान के विरुद्ध इस देश में बोलना अपने को प्रबुद्ध दिखाने का एक फैशन बन गया है. जिस तरह प्रत्येक व्यक्ति अपने घर के नियमों का पालन करता है वैसे ही प्रत्येक नागरिकों को राष्ट्र के नियमों का आदर्श पूर्ण तरीके से पालन करना चाहिए.
अधिवक्ता जितेंद्र कुमार सिन्हा नीरज ने कहा कि संविधान में सभी को अभिव्यक्ति एवं बोलने का अधिकार दिया गया है. लेकिन कहीं भी राष्ट्र को अपमानित करने का अधिकार नहीं दिया गया है.
अधिवक्ता डॉ कामोद सिंह ने बताया कि देशद्रोह के मामलों की सुनवाई स्पीडी ट्रायल के साथ करना चाहिए.
अधिवक्ता विशाल कुमार ने कहा कि राष्ट्र के विरुद्ध आवाज उठाना राष्ट्र के हित में कभी भी अच्छा नहीं होता है.जिसका बाद में खामियाजा वहां के निवासियों को भी भुगतना पड़ता है.
लोक अभियोजक नंद गोपाल प्रसाद ने कहा कि राष्ट्र द्रोह के मामले में गिरफ्तारी के पूर्व अभियुक्त के विरुद्ध पूरा साक्ष्य एकत्रित होना चाहिए. मीडिया ट्रायल के आधार पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए. इसमें बिना वजह शामिल किये गये व्यक्ति को सामाजिक दंड पहले मिल जाता है.
मनरेगा में फर्जीवाड़े का खेल
सरकार के लाख प्रयास के बावजूद मनरेगा योजना लक्ष्य हासिल नहीं कर पा रही है़ वित्तीय वर्ष में योजना के तहत न तो लक्ष्य के अनुरूप मजदूरों को काम मिला और न ही राशि खर्च हो पायी है़ काम की मांग कर रहे मजदूरों के लिए योजना स्वीकृत की गयी. लेकिन 11 माह में भी अधिकांश मजदूरों को काम नहीं मिला है. 100 दिनों का रोजगार तो दूर, बहुत मजदूरों को 10 दिनों का भी काम नहीं मिला है़ वहीं दूसरी तरफ योजना में बिचौलियों की सक्रियता कम होने का नाम नहीं ले रही रही है़ दरअसल यह खेल लगभग हर पंचायत में हो रही है़ मनरेगा कर्मियों की मिली भगत से पंचायतों में सक्रिय बिचौलियों ने सैकड़ों फर्जी जॉब कार्ड बनवा रखे है़ ऐसे फर्जी मजदूरों का खाता बैंक में खोला गया है, जो पंचायत प्रतिनिधियों के संरक्षण में फर्जी जॉबकार्ड पंचायतों में रुपया छापने की मशीन बने हुए है़ं
जांच के नाम पर होती है वसूली :
मनरेगा योजना में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए हर सप्ताह जिला प्रशासन के अधिकारी मनरेगा की योजनाओं की जांच करते है़ं लेकिन संबंधित अधिकारी जांच पूरी करने के बजाय अपना हिस्सा लेकर वापस लौट जाते हैं.
क्या कहते हैं मुखिया
मुखिया संघ के अध्यक्ष भरत तिवारी योजनाओं में पंचायत प्रतिनिधियों के गलत तरीके से दखल देने की बात सिरे से खारिज करते हैं. इन्होंने कहा है कि मनरेगा एवं अन्य योजनाओं से जुड़े कागजात का रखरखाव रोजगारसेवक व पंचायत सेवक के जिम्मे होता है़ योजनाओं को अमलीजामा पहनाने वाले पंचायत जनप्रतिनिधि बेवजह शक के घेरे में आते हैं.
क्या कहते हैं पदाधिकारी
मनरेगा कार्यक्रम पदाधिकारी मो़ जावेद अंसारी ने कहा कि योजनाओं की नियमित जांच मनरेगा के कार्यक्रम पदाधिकारी व जिला प्रशासन के अधिकारी करते हैं. जांच में अनियमितता पाये जाने पर कई पंचायतों में कार्रवाई की गयी है. आने वाले दिनों में योजना की निगरानी को और बढ़ाने का प्रयास किया जायेगा़