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प्रसिद्ध पंचकोसी परिक्रमा कल से

बक्सर : बक्सर अति प्राचीन धार्मिक, आध्यात्मिक ऐतिहासिक एवं ऋषियों की तपोस्थली रही है. जहां साल में कई धार्मिक मेले का आयोजन होता है. खानपान आधारित प्रसिद्ध पंचकोसी यात्रा की शुुरुआत इस वर्ष 30 नवंबर से हो रहा है, जो चार दिसंबर 15 तक चलेगा. मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान राम अयोध्या से आकर […]

बक्सर : बक्सर अति प्राचीन धार्मिक, आध्यात्मिक ऐतिहासिक एवं ऋषियों की तपोस्थली रही है. जहां साल में कई धार्मिक मेले का आयोजन होता है. खानपान आधारित प्रसिद्ध पंचकोसी यात्रा की शुुरुआत इस वर्ष 30 नवंबर से हो रहा है, जो चार दिसंबर 15 तक चलेगा. मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान राम अयोध्या से आकर बक्सर के ऋषियों के साथ पंचकोसी परिक्रमा किये थे,

उसी समय से यह परंपरा आज तक कायम है, जो प्रतिवर्ष अगहन मास में मनाया जाता है. पंचकोसी यात्रा 30 नवंबर को रामरेखा घाट पर गंगा स्नान के साथ शुरू होकर पांच ऋषियों के आश्रम पर अलग-अलग पकवान रूपी प्रसाद ग्रहण करते हुए चार दिसंबर को लिट्टी-चोखा खाने के साथ समाप्त हो जायेगी.

पहला दिन :- यात्रा की शुरुआत 30 नवंबर को प्रथम दिन को रामरेखा घाट पर स्नान के साथ शुरू होगा. रामरेखा घाट पर स्नान के बाद पंचकोसी परिक्रमा श्रद्धालु प्रथम पड़ाव अहिरौली गांव में डालेंगे, जहां गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या देवी मंदिर में पूजा-अर्चना कर पूआ पकवान बनाते हैं तथा भजन-कीर्तन करते हैं.
दूसरा दिन:-अहिरौली से ये श्रद्धालु दूसरे दिन स्नान के बाद दूसरे पड़ाव नदांव नारद मुनि के आश्रम पर पहुंचते हैं, जहां विशाल सरोवर में लोग डुबकी लगा शंकर भगवान की प्राचीन मंदिर में पूजा करते हैं. श्रद्धालु दिन-रात कीर्तन भजन करते हुए खिचड़ी का प्रसाद बना कर ग्रहण करते हैं. ये श्रद्धालु सरोवर के भीट पर दिन-रात गुजारते हैं.
तीसरा दिन :-अगले दिन तीसरा पड़ाव भभुवर होता है, जहां भार्गव ऋषि का आश्रम है. भभुवर में विशाल सरोवर 52 बीघे क्षेत्र फल में फैला है, जहां लोग स्नान करने के बाद पश्चिम मुखी शिव के मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं. भभुवर स्थित सरोवर के संबंध में कहा जाता है कि भगवान राम को प्यास लगी थी.
भगवान राम के प्यास मिटाने के लिए लक्ष्मण ने अपने वाण से इस तालाब को उत्पन्न किया था. इसी तालाब के भीट पर श्रद्धालु चूड़ा दही का प्रसाद ग्रहण करते हैं, जहां भगवान राम को चूड़ा-दही प्रसाद रूप में अर्पित किया था, जो आज तक प्रचलित है.
चाैथा दिन :-चौथा पड़ाव ग्राम नुआंव है, जहां अंजनी सरोवर है. यहां पुराने वृक्ष लगे हैं. यहां के प्रमुख ऋषि उद्धालक थे, जिनकी शादी लक्ष्मी की बड़ी बहन दरिद्रा देवी के साथ हुई थी. दरिद्रा देवी वहां नहीं टिक सकी.
इसलिए उनका वास स्थान पीपल के वृक्ष पर दिया गया. यहां हर शनिवार को माता लक्ष्मी जी आकर उनसे भेंट करती हैं एवं भक्त जन दीपक जलाते हैं और प्रसाद रूप में सत्तू और मूली ग्रहण करते हैं.
अंतिम दिन:-पंचकोसी का अंतिम एवं पांचवां विश्राम चरित्रवन बक्सर है. जहां अन्य राज्यों से लोग प्रसाद के रूप में लिट्टी-चोखा पकाते व खाते हैं.

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