शाहपुर : असम राइफल के राइफल मैन शहीद अखिलेश कुमार पांडेय का शव जैसे ही उनके पैतृक गांव कनैली पहुंचा उनकी पत्नी एकता देवी के आंखों से निकलने वाले आंसू रुकने का नाम नहीं ले रही थी. शव के अंतिम दर्शन के बाद तो उनका हाल और भी बुरा हो रहा था, कई महिलाएं उन्हें […]
शाहपुर : असम राइफल के राइफल मैन शहीद अखिलेश कुमार पांडेय का शव जैसे ही उनके पैतृक गांव कनैली पहुंचा उनकी पत्नी एकता देवी के आंखों से निकलने वाले आंसू रुकने का नाम नहीं ले रही थी. शव के अंतिम दर्शन के बाद तो उनका हाल और भी बुरा हो रहा था, कई महिलाएं उन्हें संभालने में लगी हुई थीं.
उन्हें इस बात का भी इल्म था कि अब देश ने उन्हें शहीद की पत्नी होने का दर्जा दे दिया है. परंतु पति की शहादत के मायने उनके लिए और उनके छोटे-छोटे बच्चों लिए क्या हैं, उनसे सुहागन होने का तमगा छिन गया है माथे की लाली अब स्याह हो चुकी है. अब उन्हें कौन समझा पायेगा की शहीद की पत्नी कहलाने और सुहागन कहलाने में क्या फर्क है. वही बूढी मां कुंती देवी को लोग यही समझा रहे थे कि बेटे ने देश के लिए बलिदान दिया है मातृभूमि की रक्षा की है. उन्हें तो बस अपना अखिलेश चाहिए जो अब कोई ला कर देने वाला नहीं.
उन्हें रुक रूक कर बेटे की जब याद आती है तब संभालने वाले भी रोने लग जाते है. शहीद के एकलौते पुत्र आयुष कुमार को उसके मां और दादी के पास लोग लेजाकर सांत्वना देते है. बेटे आयुष और बेटी अनन्या को क्या पता की शहीद शब्द के मतलब क्या होता हैं, उन्हें बस अपने पिता का गोद चाहिए जहा वो खूब खेला करते थे.
शहीद का शव गांव पहुंचते ही बरस पड़ी हर आंख
भोजपुर जिले एवं शाहपुर थाने के अंतिम छोर तथा बक्सर जिले के सीमावर्ती गांव कनैली में असम राइफल जवान तथा गांव के शहीद पुत्र अखिलेश पांडेय के शव के गांव में पहुंचते ही गांव में मातमी सन्नाटा पसर गया. परंतु कुछ ही देर में शहीद के पैतृक गांव के घर के चारों ओर से महिलाओं तथा पुरुषों के करुण क्रंदन से पूरा गांव आंसुओं के सैलाब में डूब गया. तिरंगे में लिपटे शहीद के शव को देख घरवालों को यह समझ में नहीं आ रहा था
कि अपने चहेते पुत्र, पति, भाई, भतीजा और दोस्त की शहादत पर गर्व करें कि गांव अपने लाल को हमेशा के लिए खो जाने का मातम मनाएं. इसी उधेड़-बुन में शहीद की शहादत पर जहां गर्व से छाती चौड़ी हो रही थी, तो आंखों से अपने के खो जाने का गम आंसू बनकर लगातार बह रहा था. सेना के जवानों ने अपने शहीद साथी के शव के ताबूत को देश की शान तिरंगे में समेटे उनके परिजनों के पास ले गये, जहां वीर सपूत के अंतिम दर्शन के लिए सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण इकट्ठा थे.