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एंबुलेंस में सुविधाएं नहीं, किराया महंगा

भागलपुर : जेएलएनएमसीएच (मायागंज हॉस्पिटल), सदर अस्पताल से लेकर शहर के विभिन्न अस्पतालों के समक्ष प्राइवेट एंबुलेंस की कतार दिन ब दिन लंबी होती जा रही है. यहां पर एंबुलेंस का धंधा बड़ा ही चोखा चल रहा है. बस एक ड्राइवर रखिये और गाड़ी ले लीजिये. उस पर नीली बत्ती लगा हूटर लगा लीजिये, और […]

भागलपुर : जेएलएनएमसीएच (मायागंज हॉस्पिटल), सदर अस्पताल से लेकर शहर के विभिन्न अस्पतालों के समक्ष प्राइवेट एंबुलेंस की कतार दिन ब दिन लंबी होती जा रही है. यहां पर एंबुलेंस का धंधा बड़ा ही चोखा चल रहा है. बस एक ड्राइवर रखिये और गाड़ी ले लीजिये. उस पर नीली बत्ती लगा हूटर लगा लीजिये, और तैयार हो गया एंबुलेंस. इनका मकसद मरीजों को सुविधा नहीं बल्कि एंबुलेंस के नाम अपनी जेब में भारी-भरकम रुपये भरना होता है.

निजी अस्पतालों से भी सेट होता है कमीशन : एंबुलेंस संचालकों एवं चालकों का पटना और सिलिगुड़ी के निजी अस्पतालों से कमीशन भी सेट होता है. यहां से पटना या सिलिगुड़ी रेफर किये गये मरीजों को इनके ड्राइवर मोटिवेट करते हुए अच्छा एवं बेहतर इलाज के लिए निजी अस्पतालों पर ले जाते हैं. अगर मरीज मान गया तो ये उन अस्पतालों तक पहुंचाकर अच्छी-खासी कमीशन ले लेते हैं.
सुविधा गायब और किराया दोगुना
102 एवं 108 एंबुलेंस पूरी सुविधाओं के साथ जहां मरीजों को पटना या सिलिगुड़ी पहुंचाने के लिए एक तरफ का किराया 12 रुपये प्रति किलोमीटर की दर से लेते हैं. वहीं प्राइवेट एंबुलेंस मरीजों से बिना सुविधा के दोनों तरफ का किराया वसूलते हैं. मसलन, सरकारी एंबुलेंस जहां मरीजों से पटना और सिलिगुड़ी पहुंचाने के लिए 12 रुपये प्रतिकिलोमीटर की दर से क्रमश: 2736 और 2976 रुपये लेते हैं. वहीं प्राइवेट एंबुलेंस दोगुना किराया वसूलते हैं.
बिना मानक को पूरा किये चलायी जा रही एंबुलेंस
ये होने चाहिये एक एंबुलेंस में
प्राइवेट हाे या सरकारी एंबुलेंस सबमें ऑक्सीजन सिलिंडर और मास्क की सुविधा अनिवार्य है, ताकि मरीज को जरूरत के हिसाब से यात्रा के दौरान ऑक्सीजन दिया जा सके. इसके अलावा ड्रिप चढ़ाने के लिए स्टैंड और मरीज की स्थिति को संभालने के लिए एक इएमटी(इमरजेंसी मेडिकल टेक्निशियन) भी होने चाहिए. लेकिन निजी एंबुलेंस में पांच-छह हजार रुपये मासिक पर एक ड्राइवर ही रहता है. इसी के जिम्मे मरीज को चढ़ाने-उतारने से लेकर उसके गंतव्य तक पहुंचाने की जिम्मेदारी होेती है. जब तक मरीज इन एंबुलेंस में रहता है तब तक उसकी जान भगवान भरोसे रहती है.
बिना लाइसेंस के चल रहे हैं एंबुलेंस
एंबुलेंस के लिए स्वास्थ्य विभाग से अनुमति जरूरी होती है. जिस वाहन को एंबुलेंस बनाया जाना होता है, उसकी बॉडी का निर्माण विशेष हिदायतों के मुताबिक किया जाता है ताकि मरीज एवं उसके लिए जरूरी चिकित्सा सुविधा का इस्तेमाल किया जा सके. इसके अलावा वाहन पर नीली बत्ती एवं हूटर लगाने के लिए प्रशासन से अनुमति जरूरी होती है. इसके बगैर एंबुलेंस को सड़क पर नहीं उतारा जा सकता है. बावजूद इसके धड़ल्ले से एंबुलेंस शहर में संचालित हो रहे हैं. मायागंज हॉस्पिटल एवं सदर अस्पताल में करीब एक दर्जन 102 नंबर एंबुलेंस, 108 एंबुलेंस और 1099 एंबुलेंस के संचालन के बावजूद शहर में फर्जी एंबुलेंस की बाढ़ आयी हुई है.

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